Book Title: Kalpsutram
Author(s): Bhadrabahuswami, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 23
________________ अणं देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगुत्ताए कुच्छिसि गब्भत्ताए साहरइ, साहरित्ता जामेव । दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए ॥२७॥उक्किट्ठाए तुरिआए चवलाए चंडाए जवPणाए उडुआए सिग्घाए दिवाए देवगईए, तिरिअमसंखिजाणं दीवसमुद्दाणं मझमज्झेणं । जोअणसाहस्सिएहिं विग्गहेहिं उप्पयमाणे २ जेणामेव सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडिंसए विमाणे सक्कंसि सीहासणंसि सक्के देविंदे देवराया, तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता । सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो एअमाणत्ति खिप्पामेव पच्चप्पिणइ ॥ २८ ॥ तेणं कालेणं , तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे तिन्नाणोवगए आवि हुत्था, तंजहा साहरिजिस्सामित्ति । जाणइ, साहरिजमाणे न जाणइ, साहरिएमित्ति जाणइ ॥२९॥ तेणं कालेणं तेणं सम-21 एणं समणे भगवं महावीरे जेसे वासाणं तच्चे मासे पंचमे पक्खे आसोअबहुले, तस्सणं अस्सोअबहुलस्स तेरसीपक्खेणं बासीइराइंदिएहिं विइक्कंतेहिं तेसीइमस्स राइंदिअस्स /

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