Book Title: Kalpsutram
Author(s): Bhadrabahuswami, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 64
________________ कल्प० खेतिखमे भयभेरवाणं, धम्मे ते अविग्धं भवउ "त्तिकद्दु जयजयसदं पउंजंति ॥ ११२॥ बारसो ॥३०॥तएणं समणे भगवं महावीरे नयणमालासहस्सेहिं पिच्छिजमाणे २, वयणमालासह स्सेहिं अभिथुपमाणे २, हिययमालासहस्सेहिं उन्नंदिज्जमाणे २, मणोरहमालासहस्सेहिं है। विच्छिप्पमाणे २, कंतिरूवगुणेहिं पत्थिन्जमाणे २, अंगुलिमालासहस्सेहिं दाइजमाणे २, दाहिणहत्थेणं बहूणं नरनारीसहस्साणं अंजलिमालासहस्साइं पडिच्छमाणे २, भवणपंतिसहस्साई समइच्छमाणे २, तंतीतलतालतुडियगीयवाइअरवेणं महुरेण य मणहरेणं । जयजयसद्दघोसमीसिएणं मंजुमंजुणाघोसेणय पडिबुज्झमाणे २,सविड्डीए सव्वजुईए सबबलेणं सववाहणेणं सबसमुदएणं सवायरेणं सबविभूईए सबविभूसाए सवसंभमेणं सवसंगमेणं सवपगईहिं सघनाडएहिं सव्वतालायरेहिं सबोरोहेणं सवपुप्फगंधमल्लालंकारविभू १ अभिभविअ गामकंटए (क० कि० ) २ आपुच्छिजमाणे (क० कि० ) ३ वत्थमल्ला.

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