Book Title: Kalpsutram
Author(s): Bhadrabahuswami,
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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कल्प०
बारसो
दिवसे उवसमित्ति पवुच्चइ, देवाणंदा नाम सा रयणी निरतित्ति पवुच्चइ, अच्चे लवे । ॥३४॥ मुहुत्ते पाणू थोवे सिद्धे नागे करणे सवठ्ठसिद्धे मुहुत्ते साइणा नक्खत्तेणं जोगमुवागए
णं कालगए विइक्वंते जाव सम्बदुक्खप्पहीणे ॥ १२३ ॥ जं रयणिं च णं समणे भगवं महावीरे कालगए जाव सव्वदुक्खप्पहीणे सा णं रयणी बहुहिं देवेहिं देवीहि य ओवय-३ माणेहि य उप्पयमाणेहि य उज्जोविया आवि हुत्था ॥ १२४॥जं रयणिं च णं समणे | भगवं महावीरे कालगए जाव सबदुक्खप्पहीणे, सा रयणी बहुहिं देवेहि य देवीहि य । ओवयमाणेहिं उप्पयमाणेहि य उप्पिजलगभूआ कहकहगभूआ आवि हुत्था ॥ १२५॥ जं रयणिं च णं समणे भगवं महावीरे कालगए जाव सव्वदुक्खप्पहीणे, तं रयणिं च णं ॥३॥ जिट्ठस्स गोअमस्स इंदभूइस्स अणगारस्स अंतेवासिस्स नायए पिजबंधणे वुच्छिन्ने, अणंते अणुत्तरे जाव केवलवरनाणदसणे समुप्पन्ने ॥ १२६ ॥जं रयणिं च णं समणे ।।

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