Book Title: Kalpsutram
Author(s): Bhadrabahuswami, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 80
________________ कल्प. ॥१८॥ देवीहि य जाव उप्पिजलगभूया कहकहगभूया यावि हुत्था ॥ १५३॥ सेसं तहेव, नवरं बारसो जम्मणं पासाभिलावणं भाणिअचं, जाव तं होउ णं कुमारे पासे नामेणं ॥१५४॥ पासे अरहा पुरिसादाणीए दक्खे दक्खपइन्ने पडिरूवे अल्लीणे भद्दए विणीए, तीसं । वासाइं अगारवासमझे वसित्ता पुणरवि लोगंतिएहिं जिअकप्पेहिं देवेहिं ताहिं इट्टाहि || जाव एवं वयासी ॥ १५५॥-" जय जय नंदा, जय जय भद्दा, भदं ते" जाव जयजयसदं पउंजंति ॥ १५६ ॥ पुविंपिणं पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स माणुस्सगाओ गिहत्थधम्माओ अणुत्तरे आभोइए तं चेव सवं-जाव दाणं दाइयाणं परिभाइत्ता, जे से हेमंताणं दुच्चे मासे तच्चे पक्खे पोसबहुले, तस्स णं पोसबहुलस्स इक्कारसीदिवसे । णं पुवण्हकालसमयंसि विसालाए सिबिआए सदेवमणुआसुराए परिसाए, तं चेव । सवं, नवरं वाणारसिं नगरिं मझमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव आसमपए 3 ॥३८॥

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