Book Title: Kalpsutram
Author(s): Bhadrabahuswami,
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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कल्प०
॥ ५८ ॥
विइक्कंते वासावासं पज्जोसवेइ ॥ १ ॥ से केणट्टेणं भंते! एवं बुच्चइ 'समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइराए मासे विइक्कंते वासावासं पज्जोसवेइ ? जओ णं पाएणं अगारीणं अगाराई कडियाई उक्कंपियाई छन्नाई लित्ताइं गुत्ताई घट्टाई मट्ठाई संपधूमियाई खाओदगाई खायनिद्धमणाई अप्पणो अट्ठाए कडाईं परिभुत्ताइं परिणामियाई भवंति से तेणट्टेणं एवं बुच्चइ 'समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइराए मासे विइकंते वासावासं पज्जो - सवेइ ॥ २ ॥ जहा णं समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइराए मासे विक्कते वासावासं पजोसवेइ, तहा णं गणहरावि वासाणं सवीसइराए मासे विकते वासावासं पजो| सविंति ॥ ३ ॥ जहा णं गणहरा वासाणं सवीसइराए जाव पज्जोसविंति तहा णं गणहरसीसाचि वासाणं जाव पजोसविति ॥ ४ ॥ जहा णं गणहर सीसा वासाणं जाव पञ्जो - सर्विति, तहा णं थेरावि वासावासं पजोसविंति ॥ ५ ॥ जहा णं थेरा वासाणं जाव पञ्जो
बारसो
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