Book Title: Kalpsutram
Author(s): Bhadrabahuswami,
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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जोसविंति, तहा णं जे इमे अज्जत्ताए समणा निग्गंथा विहरंति, तेविअ णं वासाणं जाव पज्जोसविंति ॥६॥ जहा णं जे इमे अज्जत्ताए समणा निगंथा वासाणं सवीसइराए मासे विइकंते वासावासं पन्जोसविंति, तहा णं अम्हंपि आयरिया उवज्झाया । वासाणं जाव पन्जोसविंति ॥७॥ जहा णं अम्हंपि आयरिया उवज्झाया वासाणं जाव : पजोसविंति, तहा णं अम्हेवि वासाणं सवीसइराए मासे विइक्कंते वासावासं पजोसवेमो, अंतरावि य से कप्पइ, नो से कप्पइ तं रयणिं उवाइणावित्तए॥८॥वासावासं पञ्जोस-18 वियाणं कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा सवओ समंता सक्कोसं जोयणं उग्गहं|
ओगिण्हित्ता णं चिट्ठिउं अहालंदमवि उग्गहे ॥९॥ वासावासं पज्जोसवियाणं कप्पइड निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा सवओ समंता सक्कोसं जोयणं भिक्खायरियाए गंतुं पडिनियत्तए ॥ १० ॥ जत्थ नई निच्चोयगा निच्चसंदणा, नो से कप्पइ सबओ समंता सक्कोसं

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