Book Title: Kalpsutram
Author(s): Bhadrabahuswami,
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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कल्प० जाव चित्ताहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं जाव आरोग्गा आरोग्गं दारयं पयाया ॥ जम्मणं । वारसो ४१॥ समुहविजयाभिलावेणं नेयवं, जाव तं होउ णं कुमारे अरिदुनेमी नामेणं ॥ अरहा।
अरिद्वनेमी दक्खे जाव तिण्णि वाससयाई कुमारे अगारवासमज्झे वसित्ता णं पुणरवि लोगंतिएहिं जिअकप्पिएहिं देवेहिं तं चेव सवं भाणियवं, जाव दाणं दाइयाणं परिभा-|| इत्ता ॥ १७२॥जे से वासाणं पढमे मासे दुच्चे पक्खे सावणसुद्धे, तस्स णं सावणसु-13 दस्स छट्ठीपक्खे णं पुवण्हकालसमयंसि उत्तरकुराए सीयाए सदेवमणुआसुराए परिसाए | अणुगम्ममाणमग्गे जाव बारवईए नयरीए मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव . रेवयए उजाणे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता असोगवरपायवस्स अहे सीयं ठावेइ, 3 ठावित्ता सीयाओ पच्चोरुहइ, पञ्चोरुहित्ता सयमेव आभरणमल्लालंकारं ओमुयइ, सयमेव । पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, करित्ता छट्टेणं भत्तेणं अपाणएणं चित्तानक्खत्तेणं जोगमुवागएणं ।
॥४१॥

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