Book Title: Kalpsutram
Author(s): Bhadrabahuswami, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 68
________________ 45 कल्प० RANAGANAS ओ णं समए वा आचलिआए वा आणापाणुए वा थोवे वा खणे वा लवे वा मुहुत्ते बारसो वा अहोरत्ते वा पक्खे वा मासे वा उउऐ वा अयणे वा संवच्छरे वा अन्नयरे वा । दीहकालसंजोए, भावओ णं कोहे वा माणे वा मायाए वा लोभे वा भए वा पिज्जे वा है। दोसे वा कलहे वा अब्भक्खाणे वा पेसुन्ने वा परपरिवाए वा अरइरई वा मायामोसे है वा मिच्छादसणसल्ले वा (ग्रं० ६००) तस्स णं भगवंतस्स नो एवं भवइ ॥ ११७॥ से णं भगवं वासावासवजं अट्ठ गिम्हहेमंतिए मासे गामे एगराइए नगरे पंचराइए । वासीचंदणसमाणकप्पे समतिणमणिलेटुकंचणे समदुखसुहे इहलोगपरलोगअप्पडिबद्धे जीवियमरणे अ निरवकंखे संसारपारगामी कम्मसत्तुनिग्घायणटाए अब्भुट्ठिए ॥ ३२ ॥ एवं च णं विहरइ ॥ ११८ ॥ तस्स णं भगवंतस्स अणुत्तरेणं नाणेणं अणुत्तरेणं दसणेणं १ उऊ वा (क० कि०, क० सु०) २ समसुहदुक्खे (क० कि०, क० मु० ) ३० मरणा नि० (क० कि०, क० सु० ॥

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