Book Title: Kalpsutram
Author(s): Bhadrabahuswami, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

View full book text
Previous | Next

Page 50
________________ कल्प बारसो ॥२३॥ OCASSASSICAISSEUSEGA साहरिए,तप्पभिई चणं बहवे वेसमणकुंडधारिणो तिरियजंभगा देवा सक्कवयणेणं से जाई इमाइं पुरापोराणाई महानिहाणाइं भवंति, तंजहा-पहीणसामिआइंपहीणसेउआई पहीणगुत्तागाराइं, उच्छिन्नसामिआई उच्छिन्नसेउआई उच्छिन्नगुत्तागाराई, गामागरनगर-2 डकब्बडमडंबदोणमुहपट्टणासमसंबाहसन्निवेसेसु सिंघाडएसु वा तिएसु वा चउक्केसु वा । चच्चरेसु वा चउम्मुहेसु वा महापहेसु वा गामट्ठाणेसु वा नगरट्ठाणेसु वा गामणिद्धमणेसु वा नगरनिदमणेसु वा आवणेसु वा देवकुलेसु वा सभासु वा पवासु वा आरामेसु वा उजाणेसु वा वणेसु वा वणसंडेसु वा सुसाणसुन्नागारगिरिकंदरसंतिसेलोवट्ठाणभवण-31 गिहेसु वा सन्निक्खित्ताई चिटुंति, ताइं सिद्धत्थरायभवणंसि साहरंति ॥ ८८॥3 जं रयणिं च णं समणे भगवं महावीरे नायकुलंसि साहरिए, तं रयणिं च णं नायकुलं है हिरण्णेणं वड्डित्था सुवण्णेणं वड्डित्था धणेणं धन्नेणं रजेणं रटेणं बलेणं वाहणेणं कोसेणं है। ॥२३॥ SAAS

Loading...

Page Navigation
1 ... 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142