Book Title: Kalpsutram
Author(s): Bhadrabahuswami,
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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कल्प० चाउरंतचक्कवट्टी रजवई राया भविस्सइ, जिणे वा तिलोगनायगे धम्मवरचाउरंतचक्क- बारसो ॥ २२ ॥ वट्टी ॥७९॥ तं उराला णं देवाणुप्पिया ! तिसलाए खत्तियाणीए सुमिणा दिट्ठा, जाव ।
आरुग्गतुद्विदीहाऊकल्लाणमंगल्लकारगा णं देवाणुप्पिआ! तिसलाए खत्तियाणीए सुमिणा : दिवा॥०॥तएणं सिद्धत्थे राया तेसिं सुमिणलक्खणपाढगाणं अंतिए एयमटुं सोचा निसम्म हटे तुटे चित्तमाणंदिते पीयमणे परमसोमणसिए हरिसवसविसप्पमाणहिअए करयलजाव ते सुमिणलक्खणपाढगे एवं वयासी॥ ८१॥ एवमेयं देवाणुप्पिया! तहमेयं देवाणुप्पिया! अवितहमेयं देवाणुप्पिया ! इच्छियमेयं० पडिच्छियमेयं० इच्छियपडिच्छियमेयं ।। । देवाणुप्पिया ! सच्चे णं एसमटे से जहेयं तुब्भे वयह त्तिकद्दु ते सुमिणे सम्म पडिच्छह, पडि-5 च्छित्ता ते सुविणलक्खणपाढए विउलेणं असणेणं पुप्फवत्थगंधमल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारिता सम्माणित्ता विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दलइ, दलइत्ता पडिविसब्जेइ
॥२२॥
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