Book Title: Kalpasutram Part_2 Author(s): Ghasilal Maharaj Publisher: Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot View full book textPage 7
________________ Jain Education 沒有減貿通海殖箱 विषयांक: ४३ भगवान् के त्रिरह से नन्दिवर्धन आदि के विलाप का वर्णन ४४ गोप द्वारा किये हुए भगवान् के उपसर्ग का वर्णन ४५ गोपकृत उपसर्ग के निवारण के लिये इन्द्र का आगमन ४६ सहायता के लिये इन्द्रकृत प्रार्थना का अस्वीकार करना ४७ इन्द्रदत्त देवदृष्य से भी भगवान् ने कभी शरीर आच्छादित नहीं किया ४८ भगवान् के उपसर्ग का वर्णन पृष्ठाकः विषयांक: ५५ भगवान् से यक्षकी क्षमाप्रार्थना १४६ - १६० ५६ श्वेताम्बिका नगरी प्रति भगवान् के विहार का वर्णन १६१ - १६३ ५७ विकट मार्ग में चंडकौशिकसर्प के बांबी के पास भगवान के कायोसर्ग करने का वर्णन ४९ इन्द्र द्वारा गोपका तिरस्कार करना ५० गोप को मारने के लिये उद्यत इन्द्र को भगवत्कृतनिषेध ५१ सहायता के लिये इन्द्र की प्रार्थना का अस्वीकार ५२ वेले के पारणें में भगवान् का बहुल नामक ब्राह्मण के घर में पधारना १६४ १६५ १६६ १६७-१६९ १७० १७१ १७२ ५३ भगवान् को भिक्षा देने से बहुल ब्राह्मण के घर में देवकृत पांच दिव्यों का प्रगट होना १७५ ५४ भगवान के यक्षकृत उपसर्ग का वर्णन १७६-१८१ पृष्ठाङ्कः १८२ १७३ - १७४ | ६३ उत्तरवाचाल गाम में नागसेन के घर पर १८३-१८७ ५८ श्वेतांविका नगरी के मार्गस्थित चंडकौशिक aft ५९ विकट जंगल के मार्ग से जाते हुए भगवान् को गोपद्वारा निषेध करना १९१ ६० चण्डकौशिक के विषय में भगवान् के विचार का वर्णन १८८ Personal १८९ - १९० ६१ चंडकौशिक सर्पकी बांबी के पास भगवान् का कायोत्सर्ग में स्थित होना १९६ ६२ चंडकौशिकस का भगवान् के उपर पिप्रयोग और भगवान के चंडकौशिक को प्रतिबोध करने का वर्णन १९२-१९५ १९७-२०३ भगवान् के भिक्षा ग्रहण का वर्णन २०४ - २०६ ६४ भगवान् के प्रतिलाभित होने से नागसेन के घर में पांच दिव्यों के प्रगट होने का वर्णन २०७ T淇淇淇 w.jainelibrary.orgPage Navigation
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