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जौ राजाजी को न पहुँचाये तो राजाजी भारी दण्ड देंगे - ऐसा सोचकर साधुने मुनि को कड़ी सजा देने का निर्णय मन ही मन में तय किया। पास ही पड़ी चमड़े की वध्री पानी में भिगोकर मुनि के मस्तक पर तानकर बांध दी। 'वघ्री ज्यों ज्यो मस्तिष्क की गर्मी से सूखेगी त्यों त्यों मस्तिष्क की नसों पर तनाव बढ़ता जायेगा और मुनि मान जायेंगे - वे जौ लौटा देंगे' ऐसा सोनी समझता था।
मुनि तो समता धारण करके खड़े हैं। भूतकाल में कैसे कैसे उपसर्ग सहन करके महानुभावों ने मोक्ष पाया है, सोचते सोचते मस्तिष्क की असह्य पीडा सह रहे हैं। चमड़े का तनाव बढ़ रहा है। मस्तिष्क की नसें टूट रही है एवं मुनि अंतर से सर्व जीवों को क्षमा कर रहे हैं। उनके ही कर्मबन्धनों का नाश हो रहा है। 'सोनी का कोई दोष नहीं है, चिड़े का भी कोई दोष नहीं है, ' - ऐसा सोचते सोचते समता के सर्वोत्तम शिखर पर पहुँच कर मुनि केवलज्ञानी हुए। कुछ ही क्षणों में देह गिर पड़ती है। मुनि की आत्मा मोक्ष प्राप्त करती है। : कुछ देर के पश्चात् एक बाई लकडे का गठ्ठर वृक्ष के नीचे पटकती है। आवाज़ से चौंककर क्रौंच पक्षी चिरक जाता है और उस चिरक में स्वर्ण जौ देखकर सोनी कांप उठता है - 'अरे...रे...रे... सत्य जाने बिना मैंने कैसा अनर्थ किया! मुनि के प्राण की जिम्मेदारी किसकी? इस गुनाह के लिए राजाजी कड़ी सजा देंगे ही।
घबराया हुआ सोनी मुनि का आशरा लेकर उनके वस्त्र पहिनकर साधु बन गया। कालक्रम से अपनी आत्मा का उद्धार किया।
माटी कहे कुम्हार से, तूं क्या रौंदे मोय; एक दिन ऐसा आयेगा, मैं रोदूँगी तोय । आये है सो जायेंगे, राजा रंक फकीर, एक सिंहासन चढ चले, एक बंधे जंजीर। कबीरा आप ठगाइये, और न ठगीये कोय; आप ढगे सुख ऊपजे, और ठगे दुःख होय।
जिन शासन के चमकते हीरे . २