Book Title: Jinshasan Ke Chamakte Hire
Author(s): Varjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
Publisher: Varjivandas Vadilal Shah

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Page 16
________________ १ - मेतारज मुनि भगवान महावीर का चौमासा राजगृही नगर में... राजा श्रेणिक, उनकी रानियाँ, पुत्र, नगरजन वगैरह देशना सुन रहे हैं। श्रेष्ठी श्री मेतार्य को देशना सुनकर वैराग्यभाव जाग उठा। वैराग्य चरितार्थ के लिए भगवान से प्रार्थना की। संसारी सगे-रिश्तेदारों एवं स्वयं श्रेणिक राजा मेतार्य को समझाते हैं : 'यह वैभव, नौ नौ नारियाँ छोड़कर दुष्कर पथ पर क्यों जा रहे हो? जरा सोचो!' मेतार्य देशना में भगवान द्वारा दिये गये भेड़ का दृष्टांत देकर समझाते हैं: भेड़ को खिला-पिलाकर क़साई अंत में काटता ही है। ___ इसे भेड समझता नहीं है। जीव इसी प्रकार खा-पीकर मौज मनाता है, परन्तु एक दिन यमराज प्राण ले लेनेवाले हैं - ऐसा जीव समझे तो चारित्र (दीक्षा) ही एक मात्र उपाय है। मेतार्य श्रेष्ठी को दीक्षा प्रदान करके भगवान उन्हें मेतारज मुनि बनाते हैं। मुनि मेतारज ने कठिन तप प्रारंभ किये। लम्बे समय के बाद वे राजगृही में पधारे। एक माह के उपवास पश्चात मुनि मेतारज पारणा हेतु गोचरी के लिए एक सोनी के घर पधारे। सोनी राजा श्रेणिक के लिए स्वर्ण के जौ घड़ रहा था। गोचरी लेने के लिए वह अंदर के भाग में गया। सोनी के अंदर जाने के पश्चात एक चिड़ा वहाँ आया। स्वर्ण जौ को खरे जौ समझकर चुग गया एवं सोनी के बाहर आने से पूर्व उडकर पास के वृक्ष पर बैठ गया। बाहर आकर सोनी ने भावपूर्वक मुनि को गोचरी करवाई और मुनि विदा हुए। सोनी फिर से काम पर बैठा और देखा तो स्वर्ण जौ गायब! जौ गये कहाँ ? चौकस मुनि ले गये! दौड़ पड़ा। मुनि को पकड़ा, घर ले जाकर खूब डाँटा, जौ माँगे। मुनि थे सच्चे बैरागी-यदि सच बोलते हैं तो सोनी चिड़े को मारकर जौ प्राप्त करेगा जिससे हिंसा का पाप लगेगा। झूठ बोलेंगे तो मृषावाद का दोष लगेगा। अतः मुनि मौन ही रहे। सोनी का क्रोध बढ़ता ही गया। सच बात वह जानता नहीं है। यदि - जिन शासन के चमकते हीरे - १

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