Book Title: Jayodaya Mahakavya Purvardha
Author(s): Bhuramal Shastri
Publisher: Digambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj

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Page 593
________________ ५७० जयोदय-महाकाव्यम् [२९-३० शाखोच्चारो यदभूत्, यथा, अमुकगोत्रोत्पन्नस्य, अमुकनाम्नः प्रपौत्राय, अमुकस्य पौत्राय, अमुकस्य पुत्राय, अमुकनाम्ने वराय, अमुकगोत्रस्य, अमुकनाम्नः प्रपौत्री, अमुकनाम्नः पौत्रीम्, अमुकनाम्नः पुत्रीम्, अमुकनाम्नीमर्पयामि-इत्येवं सासौ भुवि रत्नत्रयवत्सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रवच्छ्यिः सम्पत्त्याः प्रतीतियत एव स्थितिकारणकरोतिवंशशुद्धिप्रख्यापनरूपतया सा मृदुनिश्रेयसकेऽपवर्गरूपे यशसः प्रणोतिरासीत् ॥ २८ ॥ गुणिनो गुणिने त्रयीधराय मृदुवंशाय तु दीयते वराय । त्रिविशुद्धिमता मया जयाय ह्यसको कर्मकरी शरीव या यत् ॥२९॥ तनया विनयान्वितेति राज्ञः नयमाकर्ण्य समर्थनकभाग्यः । कृतवांस्तदिति प्रमाणमेव वरपक्षो गुणकारि सम्पदेऽवन् ॥ ३० ॥ गुणिन इति । तत्र त्रिपुरुषी-व्याख्यानावसरेऽकम्पनेनोक्तं यत्किल हे गुणिनः, त्रयोधराय श्रेष्ठबुद्धिधारकाय पक्षे नतिमते गुणिने सुशीलाय, पक्ष प्रत्यञ्चायुकाय मृदुवंशाय, मृदुः प्रशंसनीयो वंशो गोत्रं यस्य तस्मै, पक्ष मृदुर्वेणुर्यस्य तस्मै चापायेव वराय जयाय त्रिविशुद्धिमता, मनोवाक्कायशुद्धन तथैव जाति गोत्रात्मशुद्ध न, मयाऽकम्पनेन, असको सुलोचना नामतनया शरीव दीयते या विनयान्विता शरीव कर्मकरीव प्रदीयते । कथम्भूता तनयेत्याह-विनयान्वितादरशालिनी, शरीपक्षे वीनां पक्षिणां नयेन नीत्या गगनगत्यान्विता, शरीव कर्मकरी कार्यसाधिका तनया मया जयाय दीयत इति राज्ञोऽकम्पनस्य नयं कथनमाकर्ण्य समर्थनकभाग्यः समर्थनमेवैकं भजतीति समर्थनकभाग वरपक्षस्तदुक्तं सम्पदे सम्पत्तये गुणकार्यवन् पश्यन् प्रमाणं कृतवान्, स्वीचकारेति यावत् ॥ २९-३० ॥ _ अर्थ : इसके पश्चात् त्रिपुरुषी अर्थात् दोनों पक्षोंकी तीन पीढ़ियोंके नामादिका गोत्रोच्चारण हुआ, वह रत्नत्रयके समान संपत्तिका प्रतीति-कारक और वर-वधू इन दोनों पक्षोंका स्थिरीकरण करनेवाला तथा मोक्षमार्गके लिए यशका प्रणेता अर्थात् प्रसार करनेवाला प्रतीत हुआ ॥ २८ ॥ अन्वय : हे गुणिनः ! गुणिने त्रयीधराय मृदुवंशाय वराय जयाय त्रिविशुद्धिमता मया असको या शरीव कर्मकरी विनयान्विता तनया यत् किल दीयते इति राज्ञः नयं आकर्ण्य वरपक्षः गुरुकार्यसम्पदे अवन् समर्थनकभाग्यः तदिति प्रमाणमेव कृतवान् । __ अर्थ : हे सज्जनो ! त्रयी विद्याके जाननेवाले और उत्तम वंशवाले ऐसे इस (धनुष) गुणवान् वर (जयकुमार) के लिए तीन पीढ़ियोंमें विशुद्धि वाले मेरे द्वारा यह कन्या जो कि बाणका काम करनेवाली है वह दी जा रही है, अर्थात् धनुषकी सफलता जिस प्रकार बाणके द्वारा होती है उसी प्रकार इस जयकुमारका त्रिवर्ग-जीवन इस सुलोचनाके द्वारा सफल होगा। यह पुत्री विनययुक्त है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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