Book Title: Jayodaya Mahakavya Purvardha
Author(s): Bhuramal Shastri
Publisher: Digambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
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५७६ जयोदय-महाकाव्यम्
[४३-४५ करपल्लवयोः सतो विभान्ती सुममाला पुनरुत्सवेन यान्ती । सुतनोः स्तनविल्वयोः सुमित्रात्रसुसाफल्यमगादियं पवित्रा ॥ ४३ ।।
करपल्लवयोरिति । सतो वरस्य करपल्लवयोर्मध्ये विभान्ती शोभमाना प्रथम, पुनरनन्तरमुत्सवेन मङ्गलनादात्मकेन यान्ती गच्छन्तीयं पवित्रा यवालीति नाम मालाऽत्रावसरे हे सुमित्र, पाठक, सुतनोः सुन्दरशरीरायाः सुलोचनायाः स्तनावेव विल्वे श्रीफले तयोर्मध्ये सुसाफल्यं फलवत्तामगात् । कुसुमेषु फलमपि भवत्येव, तत्स्थानीयौ स्तनाविति भावः॥४३ ॥
जयहस्तगतापि या परेषां कथितान्तःकरणप्रयोगवेशा । स्मरसौधसुभासि कामकेतुहृदि माला किलतोरणश्रिये तु ..४४।।
जयहस्तेत्यादि । या माला जयस्य वल्लभस्य हस्तगतापि सती परेषां द्विषामन्तःकरणानां मनसां प्रयोगः संग्रहणं तस्य वेशो यस्याः सा स्मरसौधस्य कामदेवप्रासादस्य सुभा इव भा यस्य तस्मिन् कामकेतो रतिपतिध्वजाया हृदि वक्षसि गत्वा किल निश्चयेन तोरणश्रिये मुख्यद्वारशोभायै प्राप्ता ॥ ४४ ॥
जगदेकविलोकनीयमाराद्रमणं द्रष्टुमिवात्तसद्विचारा । निरियाय बहिर्गुणानुमानिन्नरनाथस्य सरस्वती तदानीम् ।।४५।। जगदित्यादि । तदानि तस्मिन् काले, हे गुणानुमानिन् पाठक ! जगतां सर्वेषामपि
अन्वय : हे सुमित्र ! इयं पवित्रा सुममाला सतः करपल्लवयोः विभान्ती सती पुनः उत्सवेन सुतनोः स्तनबिल्वयोः अत्र सुसाफल्यं अगात् ।।
अर्थ : हे सुमित्र ! जयकुमारके दोनों कर पल्लवोंमें सुशोभित होनेवाली यह पवित्र फूलमाला फिर उत्सवके साथ सुलोचनाके स्तनरूपी बिल्वफलोंके ऊपर जाकर अब सफलताको प्राप्त हो गई। अर्थात् पल्लव पुष्प एवं फलका योग सार्थक हुआ ॥ ४३ ॥ __ अन्वय : या माला किल जयहस्तगता सती परेषां अन्तःकरण-प्रयोगवेशा कथिता अपि सा स्मरसौधसुभासि कामकेतु-हृदि किल तोरणश्रिये तु कथिता ।
अर्थ : वह पुष्पमाला जबतक जयके हाथमें रही, तबतक वैरियोंके मनोंको दबानेवाली रही, किन्तु वही पुष्पमाला कामदेवके महलरूपी सुलोचनाके हृदयमें जाकर तोरणकी शोभाको प्राप्त हुई ।। ४४ ।।
अन्वय : हे गुणानुमानिन् ! तदानीं जगदेकविलोकनीयं रमणं द्रष्टुमिव आत्त सदिचारा नरनाथस्य सरस्वती आरात् बहिः निर्जगाम ।
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