Book Title: Jayodaya Mahakavya Purvardha
Author(s): Bhuramal Shastri
Publisher: Digambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj

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Page 624
________________ १०४-१०६ बादशः सर्गः अनयोः करकजराजिसेवाणिव कर्तुं सुकृतांशसम्पदे वा। मृदु पादभुवीष्टदेवतानां समभूत्सा कुसुमाञ्जलिः सुमाना ।। १०४ ॥ अनयोरिति । सा कुसुमाञ्जलिः शोभनो मानः सम्मानो यस्याः सा, एवम्भूता सती, अनयोयोः करकजानां हस्तकमलानां राजेः सेवा परिचर्यामाराधना गुणाधिकतयेव कतुं वाऽयवा पुनरिष्टदेवतानां पावभुवि चरणवेशे सुकृतांशस्य पुण्यसमयस्य सम्पवे सम्पादनार्थ म यथा स्यात्तथा समभूत् ॥ १०४ ॥ प्रिययोः श्रिय ईक्षणक्षणेन शुचिनीराजनभाजनप्रणेन । मृदुलाञ्जनसंयुजा हितेन दिनरात्री भ्रमिमाश्रिते हितेन ॥ १०५॥ प्रिययोरिति । प्रिययोस्तयोर्वधूवरयोः श्रियोः शोभयोरीक्षणक्षणेन शुधिनीराजनस्य, आरातिकावतरणस्य श्वधूद्वारा भाजनमेव प्रणो मूल्यं प्रतिज्ञानं वा तेन कीदृशेन, मृदुलमञ्जनं कज्जलादिमाङ्गलिकं संयुनक्ति तेन तादृशेन हितेन शुभसम्वादेन तत्र विनश्च रात्रिश्च त एव भ्रमिमाश्रिते भ्रमणशकाते। होत्युत्प्रेक्षणे। सुन्दरवस्तुमर्शनाच्च प्रेम्णा घूर्णनं युक्तमेव । कज्जलं रात्रिस्थानीयं, भाजनश्च विनस्थानीय; स्वरूपेणव तावत् ॥ १०५ ॥ पिप्पलकुपलकुलौ मृदुलाणी विलसत एतौ सुदृशः पाणी । सहजस्नेहवशादिह साक्षाद्वलयच्छलतः प्रमिलति लाक्षा ॥१०६॥ बुद्धि का प्रकाश हो और दयायुक्त हृदयमें जैनधर्म बना रहे। इस प्रकारकी कामनासे उन्होंने अर्हन्त आदि पंचपरमेष्ठी देवताओंके चरणोंमें पुष्पाञ्जलि समर्पण की ॥ १०२-१०३ ॥ अन्वय : सा कुसुमाञ्जलिः इष्टदेवतानाम् मृदुपादभुवि सुकृतांशसम्पदे वा अनयोः करकजराजिसेवाम् इव कर्तुम् सुमाना समभूत् ।। ____ अर्थ : वह पुष्पाञ्जलि इष्ट देवताओंकी कोमल चरण-भूमिको प्राप्त होकर इन दोनोंके कर-कमलोंकी सेवा करके मानों विशेष पुण्यार्जन करनेके लिए ही आई हुई थी सो अधिक शोभाको प्राप्त हुई ॥ १०४ ॥ अन्वय : प्रिययोः श्रिय ईक्षणक्षणेन शुचिनीराजनभाजनप्रणेन तेन हि मृदुलाञ्जनसंयुजा दिन-रात्री हितेन भ्रमिमाश्रिते ।। अर्थ : इसके पश्चात् इन दोनों वर-वधूकी शोभाका निरीक्षण करनेके लिए पवित्र अंजन-सहित नीराजन-भाजन (आरतीके पात्र) के बहानेसे दिन और रात्रि ही आई हुई-सी प्रतीत हुई। (आरतीका पात्र श्वेत होनेसे दिन-सा और कज्जल रात्रि-सा लग रहा था) ॥ १०५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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