Book Title: Jan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02 Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta Publisher: Meghraj Sanchiyalal Nahta View full book textPage 6
________________ यद्यपि यह प्रत्यावर्तन-यात्रा वगाल की राजधानी कलकत्ता से प्रारभ होती है । पर मैं वहा से उतनी ही दूर आचार्यश्री के साथ आ सका था जितनी दूर कि एक प्रवासी को विदा देने के लिए कोई स्थानीय व्यक्ति आ सकता है। उसके बाद मुझे पुन कलकत्ता लौट जाना पड़ा । कलकत्ते मे हम जिस कार्य के लिए ठहरे थे वह शीघ्र ही सम्पन्न हो गया था। अत थोड़े दिनो के बाद हमने भी आचार्यश्री के चरण-चिह्नो का अनुगमन प्रारभ कर दिया। पर इतने दिनो मे तो आचार्यश्री बहुत दूर निकल गये थे । हमारा अनुमान था कि हम दिल्ली तक भी उन्हें नहीं पकड सकेंगे। पर हमारी योग-क्षेम कामना ने प्राचार्यश्री की गति मे थोडी मन्दता ला दी। हमने भी लम्बी-लम्बी डगें भरनी प्रारभ की, पर फिर भी हम उन्हे डालमियानगर से पहले नही पकड सके । अपने कलकत्ते रहने के अवसर पर मैंने आचार्यश्री से एक वरदान मागा था कि मै लम्बे समय से यात्रा-प्रसग लिखता आया हू और लिखने मे अपना अधिकार भी मान बैठा हूँ । अत भले ही आज मैं यहां रहा हूँ पर जब कभी आचार्यश्री के सहवास मे रहू तो मेरा यह अधिकार मुझे मिल जाना चाहिए । तदनुसार उत्तर प्रदेश के सीमा-स्थल पर पहुचते-पहुचते मुझे पुन' यात्रा-प्रसग लिखने का अधिकार मिल गया । पर जैसा कि मैं पहले कह आया हू अपनी अस्वस्थता के कारण तथा कुछ आत्मातिरिक्त असुविधामो के कारण भी कही-कही मैं उसे निभा नहीं पाया हू । कई स्थानो पर दूसरे-दूसरे मुनियो ने भी मेरा सहयोग किया है। __ अपनी पाद-पीडा के कारण जब मै दिल्ली मे रुक गया था तो उन्होने पीछे से मेरे कार्य-सूत्र को टूटने नहीं दिया। जिसके परिणाम स्वरूप में अविकल रूप से उन यात्रा प्रसगो को यहा प्रथित कर पाया है। उसके बाद जव आचार्यश्री ने मेवाड प्रवेश किया तो मैं फिर आचार्यश्री से विछुड गया और मेरा यह प्रयास मारवाड की सीमा मे ही परिपूर्ण होPage Navigation
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