Book Title: Jan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta
Publisher: Meghraj Sanchiyalal Nahta

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Page 5
________________ पूर्व-परिचय मेरा यह सौभाग्य रहा है कि आचार्यश्री के भारत भ्रमण मे मैं पाय. उनके साथ रहा हू । यद्यपि अपने स्वास्थ्य की बाधा से मैं उनका पर्याप्त लाभ तो नही उठा सका, पर फिर भी अपनी सामर्थ्य के अनुसार मैंने न्यूनाधिक रूप मे उनका कुछ लाभ तो उठाया ही है। यात्रा के इस विद्युत्वेग मे भी मुझे प्राचार्यश्री मे हिमगिरि-सी निश्चलता के दर्शन हुए। अनेक असुविधाओ के वावजूद भी उनका स्मित उनसे विलग नही हुआ। अपने कर्तव्य के प्रति मैंने उनमे सदैव सजगता का दर्शन किया। उन्हीं विरल-प्रसगो को मेरी साहित्यिक प्रवृत्ति ने यत्र-तत्र घेरने का प्रयत्न किया है । मैं यह कहने का साहस तो निश्चय ही नही कर सकता कि मेरे छोटे-छोटे हाथ हिमाद्रि को अपने अक मे भरने में समर्थ हो सकेंगे, पर यह मैं निश्चय पूर्वक कह सकता हूं कि उनके व्यास मे प्राचार्यश्री का जितना भी व्यक्तित्व समाहित हो सका है वह अयथार्थ नही है । सचमुच आचार्यश्री को मापते-मापते मैं स्वयं ही मप गया है और यह उचित ही है कि मैं अपने वारे मे जो यथार्थ है, उससे अशेप लोगो को परिचित करा दू । इसीलिए मैंने प्राचार्यश्री के वंगाल प्रत्यावर्तन को शब्द रूप देने का यह लघु-प्रयास किया है । मेरा यह मानस-स्फटिक जितना शुभ्र और अमल है उसी के अनुरूप मैंने अपने आप मे आचार्यश्री को प्रतिविम्बित किया है । अत. इसमे आचार्यश्री के व्यक्तित्व का एकाश और मेरी योग्यता का यथासाध्य आकलन है । अत. प्राचार्यश्री का यह जीवन-प्रसंग वस्तुत मेरा ही जीवन-प्रसग है अर्थात् मेरे मानस मे प्राचार्यश्री के प्रति जो अभिन्नता है वही इसमे प्रकट हुई है।

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