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प्रस्तावना ।
लीजिये, पाठ! आज पदसंग्रहका यह तीसरा भाग भी उपशित है। इसमें कविवर भूवरदासजीके सब मिलाकर ८० पदों तथा गिलतियोंका रोगह है । यह संग्रह हमको अपने एक मित्रके द्वारा प्राप्त हुआ है। उन्होंने इसे भूधरशिलासपरसे उतारकर भेजा है । उनके फायनके अनुसार भूधरदासजीक इनके सिवाय और पद विनतियां नहीं है, परन्तु हमारी समक्ष यह कथन ठीक नहीं है । हैगतो स्वयं तीन चार पद और दो तीन विनतियां उक्त संग्रहके मिनाय मिन्ट गई थी, जिन्हें हमने इसमें शामिल कर दी हैं। हमारी समा भूवरदानजीक बहतले पद ऐसे होंगे, जो इस संग्रहमें नहीं आयोग. आरयदि हमारे पाठक सहायता करें, तो एकत्र हो सकते। जो मनन ऐसे पदाको हमारे पास भेजनेकी कृपा करंगे, उनका ग बान यदा आभार मानेंगे।
दूसरी शुम प्रतिक अभावसे हमको इस पुस्तकके संशोधनमें बइत परिश्रम करना पड़ा है। तीमी जैसा चाहिये थैमा संतोषके योग्य मंशोधन नहीं हुआ है। बहुतसे स्थान भ्रमयुक्त रह गये हैं। पाठकोंको यदि किसी पदमा मुल पाट आता हो, तो सूचित कर देवें, जि. मसे विदूरी पार पाने समय उसका संशोधन हो जाये।
कविवर भूधरदासजी विक्रमकी अठारहवीं सदीमें हो गये हैं । उन्होंने अपना पार्यपुराण नागका प्रसिद्ध ग्रन्थ संवत् १७८९ में पूर्ण किया था । पार्यपुराण, भूधरजनशतक, और भूधरविलास