Book Title: Jainpad Sangraha 01
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay
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(५१) ८॥ जल्दी परेज कीजे, परके मिलापका । दिलमस्त रहो वुधजन, लखि हाल आपका ॥ दुनि० ॥९॥ .
(१२४ ) . इस वक्त जो भविकजन, नहिं सावधान होगा। इस गाफिलीसे तेरा, खाना खराव होगा। इस०॥ टेक ॥मिथ्यातका अँधेरा, गम नाहिं मेरा तेरा । दिन दोयका वसेरा, चलना सिताव होगाइस० ॥१॥ जेवर जहानमाई, दामिनि ज्यों दे दिखाई। इसपै गरूरताई, जिससे जवाल होगा । इस० ॥२॥ ज्वानीमें हुवा जॉलिम, सब देखते हि औलम । रमता विरानी बालम, यात वेहाल होगा । इस० ॥ ३॥ झूठे मंजेकेमाई, सव जिंदगी गमाई। अजहूँ सँतोप नाहीं, मरना जरूर होगा। इस० ॥ ४ ॥ जीवोंप मिहर दीजे, जोरूं-परेज कीजे । जरंका न लोभ लीजे, वुधजन संवाव होगा। इस० ॥५॥
(१२५) कोई भोगको न चाहो, यह भोग वेद वला है।कोई० ॥ टेक ॥ मिलना सहज नहीं है, रहनेकी गम नहीं है,
सेनें-सेती सुनी है, रावनसा खाक मिला है ॥ कोई० ॥१॥ वानीत हिरन हरिया, रसनातें मीन मरिया, करनी करी पकरिया, पावक पतंग जला है ॥ कोई० ॥१॥ अलि नासिकाके काजै, वसिया है कौल-मांजै, जव होय
१ परहेज-त्याग । २ जल्दी। ३ खराबी । ४ जुल्मकरनेवाला-अन्यायी। ५ मनुष्य । ६ स्त्री। ७ मजेमें। ८ स्त्री-त्याग । ९धनका । १. पुण्य । ११ बुरी वला है । १२ सेवन करनेसे । १३ हथिनी । १४ हाथी। १५ पकड़ा गया। १६ कमलमें।

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