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चतुर्थभागः ।
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ठहराय ॥ भोर० ॥ ३ ॥ डाँयन भूत पिशाच न छलै, राजचोरको जोर न चलै । जस आदर सौभाग्यं प्रकास, द्यानत सुरग मुकतिपदवास ॥ भोर० ॥ ४ ॥
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आयो सहज वसन्त खेलें सब होरी होरा ॥ टेक ॥ उत बुधि दया हिमा वहु ठाढ़ीं, इत जिय रतन सजै गुन जोरा || आयो० ॥ १ ॥ ज्ञान ध्यान डफ ताल बजत हैं, अनहद शब्द होत घनघोरा । धरम सुराग गुलाल उड़त है, समता रंग दुहुंने घोरा ॥ आयोο ॥ २ ॥ परसेन उत्तर भरि पिचकारी, छोरत दोनों करि करि जोरा । इततें कहें नारि तुम कौकी, उर्ततैं कहें कौनको छोरों ॥ आयो० ॥ ३ ॥ आठ काठ अनुभव पावकमें, जल वुझ शांत भई सव ओरा । द्यानत शिव आनन्दचन्द छवि, देखें सज्जन नैन चकोरा ॥ आयो० ॥ ४ ॥
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७९ ।
अजितनाथसों मन लायो रे ॥ टेक ॥ करसों ताल वचन मुख भाषी, अर्थ में चित्त लगावो रे ॥ अजित• ॥ १ ॥ ज्ञान दरस सुख बल गुनधारी, अनन्त चतुष्टय ध्यायो रे । अवगाहना अबाध अमूरत, अगुरु अलघु
१ प्रश्न | २ इधरसे । ३ किसकी ? । ४ उधरसे । ५ लड़का ।