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चतुर्थभाग ।
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होसी घाता । ताको राखन सकैन कोई, सुर नर नाग विख्याता ॥ रे भाई ० ॥ २ ॥ सब जग मरत जात नित प्रति नहि, राग विना विललाता। बालक मरैं करें दुख धाय न, रुदन करै बहु माता | रे भाई ० || ३ || मूंसे हनैं बिलाव दुखी नहिं, मुरग हनैं रिस खाता ( ? ) । द्यानत मोह-मूल ममताको, नास करै सो ज्ञाता | रे भाई ० ॥४॥ १३५ | राग - आसावरी ।
सोग न कीजे वावरे ! मरें पीतंम लोग ॥ सोग० ॥ टेक ॥ जगत जीव जलबुदबुदा, नदि नाव सँजोग ॥ सोग० ॥ १ ॥ आदि अन्तको संग नहिं, यह मिलन वियोग | कई बार सवसों भयो, सनबंध मनोग ॥ सोग० ॥ २ ॥ कोट वरप लौं रोइये, न मिलै वह जोग । देखें जानें सब सुनैं, यह तन जमभोग || सोग० ॥ ३॥ हरिहर ब्रह्मा खये, तू किनमें टोग (?) । द्यानत भज भगवन्त जो, विनसे यह रोग ॥ सोग० ॥ ४ ॥
१३६ । राग - रामकली ।
रे जिया ! सील सदा दिढ़ राखि हिये ॥ टेक ॥ जाप जपत तप तपत विविध विधि, सील विना धिक्कार जिये ॥ रे जि० ॥ १ ॥ सील सहित दिन एक जीवनो, सेव करें सुर अरघ दिये । कोटि पूर्व थिति सील विहीना, नारकी र्दै दुख वज्र लिये ॥ रे जि० ॥ २ ॥ ले व्रत भंग १ होगा । २ चूहेके । ३ क्रोध । ४ प्रियजन |