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जैनपदसंग्रह
लगै म्हांरी भूल भगै जी ॥ टेक ॥ तुमहित हांक विना हो श्रीगुरु, सूतो जियरो काई जगै जी ॥ थांकी० ॥ १ ॥ मोहनिधूलि मेलि म्हारे मौथै, तीन रतन म्हारा मोह ठगै जी । तुम पद ढोकँत सीस झरी रज, अब ठगको कर नाहिं वगै जी ॥ थांकी ० ॥ २ ॥ टूट्यो चिर मिथ्यात महाज्वर, भागां मिल गया वैद मँगै जी । अंतर अरुचि मिटी मम आतम, अब अपने निजद पगै जी ॥ थांकी० ॥ ३ ॥ भव वन भ्रमत बढ़ी तिसना तिस, क्योंहि बुझै नहिं हियरा देंगे जी । भूधर गुरुउपदेशामृतरस, शान्तमई आनंद उमगे जी ॥ थांकी ० ॥ ४ ॥
१४. राग ख्याल ।
मा विलंब न लाव पैठाव तहाँ री, जहँ जगपति पिय प्यारो ॥ टेक ॥। और न मोहि सुहाय कछू अब, दीसै जगत अँधारो री ॥ मा विलंब ०
१ कैसे . २ मेरे. ३ सिरपर. ४ मेरा. ५ प्रणाम करनेसे. ६ भाग्यसे. ७ मार्गमें. ८ हृदय ९ जलता है. १० कर. ११ भेज दे. १२ उसी जगह.