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८:जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ का कोई स्थायी सेवक नियुक्त नहीं हुआ था । समय-समय पर नागसमाल, नागित, राध, मेघिय आदि भिक्षु उनकी सेवा में रहे थे। इन भिक्षुओं के व्यवहार से बुद्ध सन्तुष्ट नहीं थे, क्योंकि ये कभी-कभी उनकी आज्ञा के विरुद्ध भी काम करते थे। नागसमाल क्रोध में बद्ध के वस्त्र तथा पात्र को चौराहे पर रखकर चला गया था।' अतः प्रव्रज्या के २० वें वर्ष में अपने गिरते हुए स्वास्थ्य को देखकर बुद्ध ने एक स्थायी सेवक को इच्छा व्यक्त की। आनन्द यद्यपि बद्ध के ज्ञान-प्राप्ति के दूसरे वर्ष ही बौद्ध धर्म की शरण में आ चुके थे, परन्तु बुद्ध के स्थायी सेवक के रूप में उनकी नियुक्ति २०वें वर्ष में हुई। आनन्द स्वयं कहते हैं कि वे २५ वर्ष तक बुद्ध की सेवा में रहे।३ अतः ऐसा प्रतीत होता है कि बौद्ध धर्म में भिक्षणीसंघ की स्थापना बद्ध के ज्ञान-प्राप्ति के ५वें वर्ष में न होकर २०वें वर्ष में अथवा उसके पश्चात् वैशाली में ही हुई होगी, जब आनन्द बुद्ध के स्थायी सेवक के रूप में नियुक्त हो चुके थे।
बौद्ध धर्म में भिक्षुणी-संघ की स्थापना का श्रेय गौतम बुद्ध की क्षीरदायिका माता एवं मौसी महाप्रजापति गौतमी को है। महाप्रजापति गौतमी ने दो बार संघ में प्रवेश करने का प्रयत्न किया था। प्रथम बार में वह असफल रही। जब बुद्ध कपिलवस्तु के न्योनोधाराम में ठहरे हुये थे, गौतमी ने उनसे प्रव्रज्या प्रदान करने का निवेदन किया। परन्तु उस समय बुद्ध ने स्त्रियों को बौद्ध-संघ में प्रव्रज्या देना एकदम से अस्वीकार कर दिया। १. उदान, अट्ठकथा, ८/७. २. Life of Buddha as Legend and History, P. 122-23.
Pali Proper Names, Vol. I, P. 250-51 ३. “पण्णवीसति वस्सानि सेखभूतस्स मे सतो न कामसचा उप्पज्जि, पस्स धम्मसुषम्मतं
-थेरगाथा, क्लोक संख्या, १०३९. ४. Women Under Primitive Buddhism, P. १२० में लेखिका ने
यह सम्भावना प्रकट की है कि महाप्रजापति गौतमी के पहले यशोधरा (राहुलमाता, जो बुद्ध की पत्नी थी) भिक्षुणी बनी। परन्तु यह सम्भावना उचित नहीं जान पड़ती। मनोरथपूरणि (अंगुत्तर निकाय की टीका) के अनुसार राहुलमाता ने महाप्रजापति के निश्रय में प्रव्रज्या ग्रहण की थी।
See-Pali Proper Names, Vol. II, P. 743. ५. चुल्लवग्ग, पृ० ३७३; भिक्षुणी विनय, ६३.
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