Book Title: Jain Tattva Darshan Part 06
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 11
________________ आ) श्री शांतिनाथ भगवान की स्तुति षट्खंडना विजयी बनीने चक्रीपदने पामतां, षोडश कषायों परिहरीने सोलमा जिन राजतां, चोमासुं रही गिरिराज पर जे भव्यने उपदेशतां, ते शांति जिनने वंदता, मुज पाप सहुं दूरे थतां ।। इ) श्री रायण पगला की स्तुति जेने झरतुं क्षीर पुण्ये मस्तके जेने पडे, ते त्रण भवमां कर्म तोडी सिद्धि शिखरे जइ चडे, ज्यां आदि जिन नव्वाणुं पूर्व आवी वाणी सुणावतां, ते रायण पगला वंदता, मुज पाप सहुं दूरे थतां ।। ई) श्री पुंडरिक स्वामी की स्तुति जे आदि जिननी आण पामी सिद्धगिरि ए वसतां, अणसण करी ओक मासनुं मुनि पंचक्रोडशुं सिद्धतां, जे नाम थी पुंडरिकगिरि, अम चिहुं जगत बीरदावता, ते पुंडरिक स्वामी वंदता मुज पाप सहुं दूरे थतां।। उ) श्री आदिनाथ जिन स्तुति जे राज राजेश्वर तणी अद्भूत छटाओ राजतां, शाश्वत गिरिना उच्च शिखरे नाथ जगना शोभतां, जेओ प्रचंड प्रतापथी जग मोहने निवारतां, ते आदि जिनने वंदता मुज पाप सहुं दूरे थतां।। c.चैत्यवंदन अ) श्री आदेश्वर भगवान का चैत्यवंदन आदिदेव अलवेसरु, विनीतानो राय, नाभिराया कुलमंडणो, मरुदेवा माय पांचसे धनुषनी देहडी, प्रभुजी परम दयाल, चोराशी लाख पूर्वमुं, जस आयु विशाल वृषभ लंछन जिन वृषधरु ए, उत्तम गुणमणि खाण, तस पद पद्म सेवन थकी , लहीये अविचल ठाण ।। 1 ।। ।। 2 ।। || 3 || 9

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