Book Title: Jain Tattva Darshan Part 06
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai
View full book text
________________
2. काव्य संग्रह
A. श्री पंच परमेष्ठि प्रार्थना अरिहा सरणं सिद्धा सरणं, साहु सरणं वरीये, धम्मो सरणं पामी विनये, जिन आणा शिर धरिये... अरिहा सरणं मुजने होजो, आतम शुद्धि करवा सिद्धा सरणं मुजने होजो, राग-द्वेष ने हणवा... साहु सरणं मुजने होजो, संयम शूरा बनवा धम्मो सरणं मुजने होजो, भवोदधिथी तरवा... मंगलमय चारेनु शरणु, सघली आपदा टाले चिद्घन केरी डुबती नया, शाश्वत नगरे वाले... भवोभवना पापो ने मारा, अंतर थी हुँ निंदु छु सर्व जीवोना सुकृतोने, अंतरथी अनुमोदु छु । लाख चौराशी जीवयोनीने, अंतरथी खमावु छु । सर्व जीवोनी साथे हुं तो, मैत्री भावना भावु छु जगमा जे जे दुर्जन जन छे, ते सघला सज्जन थाओ सज्जन जनने मन सुखदायी, शांतिनो अनुभव थाओ शांतजीवो आधि-व्याधिने, उपाधिथी मुक्त बनो मुक्त बनेला पुरुषोत्तम आ, सकल विश्वने मुक्त करो
B. प्रभु सन्मुख बोलने की स्तुति
सिद्धाचलजी की 5 स्तुति (राग: एवा प्रभु अरिहंत ने पंचांग भावे हुं नमुं)
अ) जय तलेटी की स्तुति विद्याधरों ने इन्द्र देवों जेहने सदा पूजतां, दादा सीमंधर देशनामां जेहना गुण गावतां,
जीवों अनंता जेहना सानिध्यथी मोक्षे जतां ते विमल गिरिवर वंदता मुज पाप सहु दूरे थतां।।

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 132