Book Title: Jain Tattva Darshan Part 05
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 12
________________ (आ). श्री महावीरस्वामी जिन चैत्यवंदन सिद्धारथ सुत वंदीये, त्रिशलानो जायो, क्षत्रिय कुं डमां अवतर्यों, सुर-नर-पति गायो ।। 1 ।। मृगपति लंछन पाउले, सात हाथनी काय, बहोंतर वरसनुं आउखुं, वीर जिनेश्वर राय || 2 || क्षमाविजय जिनराजनो, उत्तम गुण अवदात, सात बोलथी वर्णव्यो, पद्मविजय विख्यात || 3 || D. (अ) श्री चंद्रप्रभ जिन स्तवन चंद्रप्रभ चित्त मां वस्या रे, जीवन प्राण आधार तुम विण को दिसे नहीं रे, भवि जनने हितकार... 1... चन्द्र निशदिन सुता जागता रे, चित्त धरूं तारु ध्यान रात दिवस तलसे सही रे, रसना तुज गुण गान... 2... चन्द्र मारे तुम समको नहीं रे, मुज सरीखा तुज लाख तो ही मुज सेवक गणी रे, कांई करुणा दाख... 3... चन्द्र अंतर जामी तुं खरो रे, न गमे बीजी बात सेवक अवसरे आवीयो रे, राखो अहनी लाज... 4... चन्द्र करुणा वंत कृपा करी ने, आपो निज पद वास रे उदयरत्न ऐम उच्चरे..., दीजे तास सुवास रे... 5... चन्द्र (आ). श्री महावीरस्वामी जिन स्तवन दीन दुःखियानो तु छे बेली तु छे तारणहार तारा महिमानो नहीं पार राजपाट ने वैभव छोडी, छोडी दीधो संसार, तारा महिमानो ..... ।। 1 ।। चंडकोशीयो डसीयो ज्यारे, दूधनी धारा पगथी निकले विषने बदले दुध ने जोईने, चंडकोशियो आव्यो शरणे चंडकोशिया ने तें तारी, कीधो घणो उपकार, तारा महिमानो .... || 2 || (10)

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