Book Title: Jain Tattva Darshan Part 05
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 85
________________ यात्रा करने पर भी दिवाल का दूसरा सिरा(अंत) न मिला। अन्तत: दिशा सूचक यंत्र की सहायता से चालीस हजार मील की वापसी यात्रा कर के जहाँ से चले थे वहाँ वापस आये। ___आज के भूगोल के अनुसार दक्षिणी ध्रुव प्रदेश में जहाँ से यात्रा प्रारंभ की थी वहाँ पृथ्वी की परिधि 10700 मील होती है। दिशा सूचक यंत्र की सहायता से एक ही दिशा मे 40 हजार मील चले, इससे पृथ्वी की परिधि कितनी अधिक होगी इसका अनुमान लगाया जा सकता है। हमें पढ़ाया जाता है कि पृथ्वी गेंद के समान गोल है अत: एक ही दिशा में चलने पर जहाँ से चले वहीं वापस पहुँचा जा सकता है। इस सिद्धांत के अनुसार तो कैप्टन जे. रास लगभग 4 बार यात्रा के प्रारंभ स्थल पर पहुँच गये होते। किंतु ऐसा न हुआ और उन्हें यात्रा प्रारम्भ स्थल पर वापस आने के लिये पुन: 40 हजार मिल की वापसी यात्रा करनी पड़ी। ___कैप्टन जे. रास की दक्षिणी ध्रुव प्रदेश की यात्रा से हमें ज्ञात होता है कि पृथ्वी गोल नहीं है, बहुत विशाल है जहाँ अभी तक कोई नहीं पहुँच सका है। यह एक स्पष्ट प्रयोग है। ऐसे अनेक प्रमाण हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि " आज जो स्कूलों में पढाया जा रहा है कि पृथ्वी के चारों ओर कई बार प्रदक्षिणा की जा चुकी है।" यह बात सरासर गलत है। F. स्टीमरों और वायुयानों को निगलता बरमूडा त्रिकोण બર્મુડા ત્રિકોણ ध्यानपूर्वक उपर के चित्र को देखिये। यह चित्र बरमूडा त्रिकोण का है। बरमूडा त्रिकोण - उत्तरी अमेरिका से लगभग 2400 किलोमीटर दूर एटलांटिक महसागर में है। यह त्रिकोण विश्व के 79

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