Book Title: Jain Tattva Darshan Part 05
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 90
________________ भरत महाराजा एक दिन स्नान करके, शरीर पर चंदन का लेप लगाकर सर्व अंगों पर दिव्य रत्न आभूषण धारण करके अंत:पुर के आदर्शगृह में गये । वहाँ दर्पण में अपना स्वरूप निहार रहे थे तब एक अंगूलि से मुद्रिका गिर गई । उस अंगूलि पर नजर पड़ते वह कांतिविहीन लगी । उन्होंने सोचा कि यह अंगूलि शोभारहित क्यों है ? यदि अन्य आभूषण न हो तो और अंग भी शोभारहित लगेंगे? ऐसा सोचतेसोचते एक-एक आभूषण उतारने लगे। सब आभूषण उतर जाने के बाद शरीर पत्ते बगैर के पेड़ समान लगा । शरीर मल और मूत्रादिक से मलिन है । उसके ऊपर कपूर एवं कस्तूरी वगैरह विलेपन भी उसे दूषित करते हैं - ऐसा सम्यक् प्रकार से सोचते-सोचते क्षपकश्रेणी में आरूढ़ होकर शुक्लध्यान में लीन होते ही उनके सर्व घाति कर्म का क्षय हो गया एवं वे भी केवली बन गये । B. रोहिणीया चोर राजगृही नगरी के नजदीक वैभारगिरि गुफा में लोहखुर नामक भयंकर चोर रहता था । लोगों पर पिशाच की तरह उपद्रव करता था । नगर के धन भंडार और महल लूटता था । लंपट होने के कारण परस्त्री का उपभोग भी करता था । रोहिणी नामक स्त्री से उसे रोहिणेय नामक पुत्र हुआ । वह भी पिता की तरह भयंकर था । मृत्यु-समय नजदीक आता देखकर लोहखुर ने रोहिणेय को बुलाकर कहा,'तू मेरा एक उपदेश सुन और उस ढंग से आचरण जरूर करना ।' रोहिणेय ने कहा, 'मुझे जरूर आपके वचन अनुसार चलना ही चाहिये । पुत्र का वचन सुनकर लोहखुर हर्षित होकर कहने लगा, जो देवता के रचे हुए समवसरण में बैठकर महावीर नामक योगी देशना दे रहे हैं, वह प्रवचन तूं कभी भी सुनना मत।' ऐसा उपदेश देने के बाद लोहखुर की मृत्यु हो गई। कई बार रोहिणीया समवसरण के निकट से गुजरता था । क्योंकि राजगृही जाने का दूसरा मार्ग भी न था । वहाँ से गुजरते समय दोनों कान में अंगुलियां डालकर वहाँ से गुजर जाता जिससे महावीर की वाणी सुनाई न दे और पिता की आज्ञा का भंग भी न हो । एक बार समवसरण से गुजरते हुए पैर में एक कांटा चुभा । कांटा निकाले बिना आगे बढ़ना असंभव था । न चाहते हुए कान से अंगुलि निकालकर काँटा पाँव से बाहर निकाल डाला । लेकिन उस समय दौरान भगवान की वाणी निम्न अनुसार उसे सुनाई दी । 'जिसके चरण पृथ्वी को छूते शूल निकालते नहीं है, नेत्र निमेषरहित होते हैं, पुष्पमालाएँ सूखती नहीं है व समय रोहिणेय चोर को शरीर धूल तथा प्रस्वेद रहित होता है वे देवता कहलाते हैं।' भगवान महावीर की इतना सुनते ही वह सोचने लगा, मुझे बहुत कुछ सुनाई दिया। गाणी सुनाई दी। धिक्कार है मुझे । मेरे पिता ने मृत्यु समय दी हुई आज्ञा का मैं X4

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