Book Title: Jain Tattva Darshan Part 05
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 88
________________ 16. कहानी A. श्री भरत और बाहुबलि भगवान आदिनाथ की दो पत्नियाँ : सुमंगला और सुनंदा सुमंगला और ऋषभ युगलिये रूप में साथ-साथ जन्मे थे । सुनंदा के साथी युगलिये की ताड वृक्ष के नीचे सिर पर फल गिरने से मृत्यु हो गई थी । युगलिये में दो में से एक की अकाल मृत्यु हो ऐसा यह प्रथम किस्सा था । सौधर्मेन्द्र इन्द्र ने ऋषभदेव के पास जाकर कहा, आप सुमंगला तथा सुनंदा से ब्याह करने योग्य हो, हालांकि आप गर्भावस्था से ही वितराग हो लेकिन मोक्षमार्ग की तरह व्यवहारमार्ग भी आपसे ही प्रकट होगा ।' यह सुनकर अवधिज्ञान से ऋषभदेव ने जाना कि उन्हें 83 लाख पूर्व तक भोगकर्म भोगना है । सिर हिलाकर इन्द्र को अनुमति दी और सुनंदा और सुमंगला से ऋषभदेव का विवाह हुआ । समयानुसार ऋषभदेव को सुमंगला से भरत और ब्राह्मी नामक पुत्र-पुत्री जन्में एवं सुनंदा से बाहुबलि और सुन्दरी का जन्म हुआ । उपरांत, सुमंगला से अन्य 49 जुड़वे जन्मे । समय बीतते ऋषभदेव ने प्रवज्या ग्रहण करने का निश्चय किया । भरत सबसे बड़ा होने के कारण उसे राज्य ग्रहण करने को कहा गया एवं बाहुबलि वगैरह को योग्यतानुसार थोड़े देश बाँट दिये और चारित्र ग्रहण किया । अलग-अलग देशों पर भरत महाराज ने अपनी आन बढ़ाकर चक्रवर्ती बनने के सर्व प्रयत्न किये । अन्य अठ्ठानवें भाई भरत की आन का स्वीकार करना या नहीं, इसका निर्णय न कर सकने के कारण भगवान श्री आदिनाथ से राय लेने गये । भगवान ने उन्हें बोध दिया, सच्चे दुश्मन मोह-मान, माया, क्रोध वगैरह के साथ लड़ो याने चारित्र ग्रहण करो । चक्ररत्न अलग-अलग देशों में घूमकर विजयी बनकर लौटा लेकिन चक्ररत्न ने आयुधशाला में प्रवेश न किया । राजा भरत द्वारा कारण पूछने पर मंत्रीश्वर ने कहा, आपके भाई बाहुबलि अभी आपके अधीन नहीं है । वे आपकी शरण में आवे तो ही आप चक्रवर्ती कहे जाओगे और चक्ररत्न आयुधशाला में प्रवेश करेगा ।' भरतेश्वर ने अपना दूत बाहुबलिजी के पास तक्षशिला भेजा । तक्षशिला का राज्य बाहुबलिजी भोग रहे थे । दूत ने आकर बाहुबलिजी को भरतेश्वर की शरणागति लेने को समझाया, जिससे भरत महाराज सच्चे अर्थ में चक्रवर्ती बन सके । लेकिन बाहुबलि ने भरतजी का स्वामीत्व स्वीकार करने का साप्त इन्कार कर दिया । भरत और बाहुबलि दोनों युद्ध पर उतर आये । युद्ध 12 साल लम्बा चला । खून की नदियाँ बहने लगी । दोनों में से किसीकी भी हार जीत न हुई । यह हिंसक लड़ाइ अधिक न चले इसलिये सुधर्मेन्द्र देव ने दोनों भाईयों को आमने-सामने लड़ने को समझाया । दोनों भाई आमने-सामने लड़ने तत्पर हुए । पांच प्रकार के युद्ध में बाहुबली जोत गये। तब 82

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