Book Title: Jain Tattva Darshan Part 05
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

View full book text
Previous | Next

Page 93
________________ बढ़ते गये । लेकिन हमें सार्थ तो मिला नहीं और इस घोर बन में पहुँच गये ।' नयसार ने कहा, 'अरे रे ! यह सार्थ कैसा निर्दयी ! कैसा विश्वासघाती! उसकी आशा पर साथ चले साधुओं को साथ लिये बिना स्वार्थ में निष्ठुर बनकर चल दिया । यह मेरा पुण्य है कि आप अतिथि के रूप में यहाँ पधारें हैं, यह अच्छा ही हुआ है । इस प्रकार कहकर नयसार अपने साथ मुनि को भोजन स्थान पर ले गया और अपने लिये तैयार किये गये अन्न-पानी को मुनियों को वोहराया । मुनियों ने अलग जाकर अपने विधि अनुसार आहार ग्रहण किया । भोजन करके नयसार मुनियों के पास पधारे और प्रणाम करके कहा, 'हे भगवंत ! चलिये मैं आपको नगर का मार्ग बता दूं ।' मुनि नयसार के साथ चले और नगरी के मार्ग पर पहुँच गये । वहाँ मुनियों ने एक वृक्ष के नीचे बैठकर नयसार को धर्मोपदेश दिया । सुनकर अपनी आत्मा को धन्य मानते हुए नयसार ने उसी समय समकित प्राप्त किया एवं मुनियों को वंदना करके वापिस लौटा और सर्व काटे हुए काष्ट राजा को पहुँचाकर अपने गाँव आया । तत्पश्चात् यह दरियादिल नयसार धर्म का अभ्यास करते, तत्त्व चिंतन और समकित पालते हुए जीवन यापना करने लगे । इस प्रकार आराधना करते हुए नयसार अंत समय पर पंच नमस्कार मंत्र का स्मरण करके, मृत्यु पाकर सौधर्म देवलोक में पल्योपम आयुष्यवाला देवता बना । उन्हीं की आत्मा सत्ताईसवें भव में त्रिशला रानी की कोख से जन्म लेकर चोबीसवें तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी बनी । D. श्री इलाचीकुमार इलावर्धन नामक नगर में जितशत्रु नामक राजा राज्य करता था । उस गाँव में इभ्य नामक सेठ व धारिणी नामक उसकी सद्गुणी स्त्री रहते थे । वे सर्व प्रकार से सुखी थे लेकिन संतान न होने का एक दु:ख था । इस दम्पती ने अधिष्ठायिका इलादेवी की आराधना करते हुए कहा कि, 'यदि पुत्र होगा तो उसका नाम तेरे नाम पर ही रखेंगे।' कालक्रम से उन्हें पुत्र हुआ और मनौती अनुसार उसका नाम इलाचीकुमार रखा। आठ वर्ष का होते ही इलाचीकुमार को पढ़ने के लिये अध्यापक के पास भेजा गया । उसने शास्त्रों का सूत्रार्थ सहित अध्ययन किया । युवा अवस्था आई लेकिन युवा स्त्रीयों से वह जरा-सा भी मोहित न हुआ । घर में साधू की तरह आचरण करता रहा। पिता ने सोचा,'यह पुत्र धर्म, अर्थ और काम तीनों में प्रवीणता नहीं पायेगा तो उसका क्या होगा? उसे व्यसनी लोगों की टोली में रक्खा, जिससे वह जैन कुल के आचार विचार न पालकर धीरे-धीरे दुराचारी बनता गया । ___ इतने में वसंत ऋतु आयी । इलाचीपुत्र अपने कुछ साथियों के साथ फल-फूल से सुशोभित ऐसे उपवन में गये, जहाँ आम्र, जामून वगैरह फल तथा सुगंधित फूलों के वृक्ष थे । वहाँ लंखीकार नामक नट की पुत्री को उसने नृत्य करते हुए देखा । उसे अपनाने की इच्छा हुई । यह इच्छा बार-बार होने लगी और वह दिग्मूढ होकर पूतले की भाँति खड़ा रह गया । मित्र इलाचीकुमार के मनोविकार को समझ गये और उसे समझाकर घर ले गये । घर जाने के बाद वह रात्रि को सोया लेकिन लेशमात्र निद्रा न आई, क्योंकि 87

Loading...

Page Navigation
1 ... 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104