Book Title: Jain Tattva Darshan Part 05
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 70
________________ उपादेय= ग्रहण करने योग्य तत्त्व = पुण्यानुबंधि पुण्य, संवर, निर्जरा एवं मोक्ष ये जीवन में अपनाने जैसे तत्त्व है। इससे आत्मा धर्म द्वारा मोक्ष को पाती है। ज्ञेय = जानने योग्य तत्त्व = जीव, अजीव, ये दोनों जानने योग्य हैं। इससे जीव का महत्त्व समझ में आता है एवं अजीव का ममत्व टूटता है। ऐसे तो सभी तत्त्व जानने योग्य है, परन्तु जीव और अजीव ये दो तत्त्व सिर्फ जाने जा सकते हैं, लेकिन इनका त्याग अथवा ग्रहण नहीं किया जा सकता। इसलिए ये दोनों तत्त्व ज्ञेय माने गये हैं। शेष सात तत्त्वों की जानकारी प्राप्त कर, हेय का त्याग करना चाहिए तथा तत्त्वों को जीवन में अपनाना चाहिए। __ नाँव के दृष्टांत से नवतत्त्व की समझ समुद्र में एक नाँव (नौका) है। वह एक जड़ वस्तु है। उसे अजीव कहा जाता है। अजीव वस्तु को चलाने के लिए उस नौका में जीव यानी मनुष्य बैठा है। अनुकूल पवन-जो जीव को सुख की दिशा में ले जाता है, वह पुण्य है। प्रतिकूल पवन - जो जीव को दु:ख की दिशा में ले जाता है, वह पाप है। नौका में छेद पड़ जाए और उस नौका में पानी भरने लगे तो उसे आश्रव कहा जाता है। जीव उस छेद को किसी वस्तु से बंद कर दे उसे संवर कहा जाता है। छेद को बंद करने के बाद जीव नौका के अंदर रहे हुए पानी को बाहर निकालता है उसे निर्जरा कहते हैं। बाद में जो नाँव का लकड़ा भीगा हुआ होता है उसे बंध कहा जाता है। जीव उस नाँव को सुखाने के लिए समुद्र के तट पर आकर उस नौका को बांधकर अपने घर लौटते हैं। उसे मोक्ष कहा जाता है। नवतत्त्व के ज्ञान से अमूल्य लाभ इन जीवादि तत्त्वों को जो जानता है, वह सम्यग्दर्शन पाता है। हो सकता है कि मंद बुद्धि के कारण स्वयं नवतत्त्वों का सूक्ष्म ज्ञान कोई न भी समझ पाए फिर भी अन्तर के भावों से इन नवतत्त्वों के प्रति अटल श्रद्धा रखने से उसको भी सम्यग्दर्शन प्राप्त हो सकता है। ___ सम्यग्दृष्टि के हृदयोद्गार 1. श्री जिनेश्वर परमात्मा द्वारा कथित सभी वचन सत्य ही होते हैं, कदापि असत्य नहीं हो सकते, क्योंकि उनमें असत्य के हेतु - क्रोध, मान, माया, लोभ, भय तथा हास्य आदि सभी दोषों का सर्वनाश हो चुका है। 2. 'जो श्री जिनेश्वर भगवान ने कहा है, वह सत्य और शंका रहित है' ये शास्त्र वचन सम्यग् दृष्टि ___की अटल श्रद्धा को व्यक्त करते हैं। हमें सम्यग् दर्शन का स्पर्श हुआ या नहीं उसका निश्चय सम्यक्त्व के इन पाँच लक्षणों द्वार हो सकता है: 1. शम :- सर्व जीवों के प्रति समभाव रखना, अपराधी का भी मन से बुरा न विचारना। सभी का कल्याण हो, सदा ऐसी पवित्र भावना रखना। -64)

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