Book Title: Jain Tattva Darshan Part 05
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 75
________________ दीक्षा कल्याणक होने से एकासणा किया जाता है। फिर हर महीने की वद 10 को यह आराधना करनी चाहिये । मेरु तेरस - पोष वद 13 इस युग के प्रथम धर्म प्रवर्तक श्री ऋषभदेव तीर्थंकर प्रभु का मोक्ष गमन दिन है । इस दिन उपवास, पांच मेरु की रचना तथा घी के दीपक करके ' श्री ऋषभदेव पारंगताय नमः' के 2000 जाप किये जाते है । - फागण वद 8 ऋषभदेव प्रभु का जन्म और दीक्षा कल्याणक दिन है। यहां पिछले दिन से छट्ठ या अट्ठम कर वर्षीतप शुरु किया जाता है। इसमें एकान्तर उपवास - बियासणा सतत् चलते है। बीच में अगर चौदस आए तो उपवास ही करना, चौमासी का छट्ट ही करना। ऐसे सलंग चलते दूसरे वर्ष की वैशाख सुद 2 तक तप चलता है। वैशाख सुद 3 अक्षय तृतीया के दिन वर्षीतप का पारणा सिर्फ इख के रस से पारणा होता है। ऋषभदेव प्रभु ने तो सलंग सिर्फ चौविहार उपवास लगभग 400 दिन तक किये थे और श्रेयांसकुमार ने वैशाख सुद 3 को पारणा कराया था। इसी का वर्षीतप सूचक है। वैशाख सुद 11 भगवान महावीर ने पावापुरी में शासन की स्थापना की थी और 11 गणधर दीक्षा द्वादशांगी आगम रचना, और चतुर्विध संघ रचना इस दिन हुई थी । इसकी सकल संघ में सामुहिक उपासना होनी चाहिये । " दिवाली के दिन प्रभु महावीर प्रभु ने जो पिछले दिन सुबह धर्मदेशना शुरु की थी वो सलंग दिवाली के रात्री के अंतिम प्रहर तक चली, यानि कि 16 प्रहर देशना चली, फिर प्रभू का निर्वाण हुआ। लोगो ने भावदीपक के बुझ जाने के स्मृतिरुप दीपक जलाये और दीपावली पर्व शुरु हुआ । D. अठारह पाप स्थानक पापस्थानक : जिन कार्यों को करने से या जिन भावों के सेवन से आत्मा पापकर्म को बांधता है उन्हें पापस्थानक कहते हैं । पाप बंध का कारण यानि जो कार्य पाप बंध के कारण है। उसे पापस्थानक कहते हैं । ये कुल अट्ठारह प्रकार के हैं। 1. प्राणातिपात प्राण + अतिपात यानि किसी के प्राणों का नाश करना, पीडा पहुँचाना। इसका अर्थ है हिंसा करना, मारना, विराधना करना आदि । प्राण शब्द से 10 प्रकार के प्राण समझने हैं। वे हैं (5) पाँच इन्द्रिय (6) मन बल (7) वचन बल (8) कायबल (9) श्वासोच्छवास और (10) आयुष्य । इसलिए इनमें से किसी भी प्राणों की हिंसा करना या सिर्फ चोट पहुँचाने से भी 'प्राणातिपात' का दोष लगता है। 69 प्रणातिपात 1

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