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'नवतत्त्व में रूपी-अरूपी भेद रूपी :- जिसमें रूप, रस, गंध, स्पर्श हो उसे रूपी कहते हैं। अरूपी :- जो रूप, रस, गंध, स्पर्श रहित हो उसे अरूपी कहते हैं। रूपी तत्त्व :- जीव, अजीव (पुद्गल), पुण्य, पाप, आश्रव, बंध । अरूपी तत्त्व :- अजीव (पुद्गल सिवाय), संवर, निर्जरा, मोक्ष ।
___. पर्व एवं आराधना सामन्यतः परभव का आयुष्य पर्व तिथि के दिन निर्धारित होता है, अतः पर्व दिन धर्ममय हो तो दुर्गति का आयुष्य तय नहीं होता। हर महीने की दूज आदि 12 तिथि की आराधना करनी। ये भी न बन पाए तो कम से कम 5 तिथि - सुद 5, दो आठम, दो चौदस की आराधना तो निश्चय ही करनी। बाकी 12 में से एकाध तिथि की उस उद्देश्य से उपवास आदि से खास आराधना की जा सकती है। जैसे ग्यारस 11 गणधर की तथा 11 अंग की आराधना के लिये आराधी जाती है।
सभी पर्वतिथियों में कदाचित अच्छे तरीके से आराधना न कर सकें तो भी शक्ति के अनुसार कोई न कोई विशेष त्याग, जिनभक्ति , दान, प्रतिक्रमण, आरंभ-संकोच आदि से आराधना करें।
कल्याणक तिथियों में अगर कुछ भी न बने तो कम से कम उन-उन प्रभु के नाम की उस-उस कल्याणक की नवकारवाली अवश्य गिनें जिससे अर्हद्भक्ति का भाव जगता और बढता रहेगा।
चौमासी चौदस को उपवास, पौषध, चौमासी देववंदन आदि किये जाते है। आराधक आत्मा को पक्खी चौदस के दिन उपवास, चौमासी चौदस के दिन दो उपवास और संवत्सरी के दिन अट्ठम अवश्य करना चाहिये। इसमें अगर चौदस को छ्ट्ट की शक्ति न हो तो ग्यारस और चौदस को अलग-अलग उपवास करने पर भी चौमसी पर्व तप की आराधना पूरी होती है।
कार्तिक सुद 1 से नया वर्ष प्रारम्भ होता है। अतः सुबह से पूरा वर्ष धर्ममय, अच्छी धर्मसाधना से एवं सुन्दर चित्त -समाधि से पसार हो जाय उसके लिये नवस्मरण, गौतमरास सुनना, फिर चैत्य परिपाटी, फिर स्नात्र-महोत्सव के साथ विशेष प्रभु भक्ति करें।
___ कार्तिक सुद 5 सौभाग्य पंचमी है। इस दिन ज्ञान की आराधना के लिये उपवास पौषध, ज्ञानपंचमी का देववंदन, 'नमो नाणस्स' की 20 माला के 2000 जाप किये जाते है।
___मगसर सुद 11 मौन ग्यारस है, अतः पूरा दिन-रात मौन रखकर उपवास के साथ पौषध करना, मौन ग्यारस के देववंदन, तथा उस दिन हुए 90 भगवान के 150 कल्याणक की 150 नाला गिनें।
मगसर वद 10 पार्श्वनाथ प्रभु का जन्म कल्याणक है अतः उस दिन खीर क एकासणा या आयंबिल कर पार्श्व प्रभु की स्नात्रादि से भक्ति तथा त्रिकाल देववंदन और 'ॐ ह्रीँ श्री पार्श्वनाथ अर्हते नमः' की 20 माला गिनी जाती है। विशेष में मगसर वद 9 को एकासणा, तथा मगसर वद 11 को पार्श्वनाथ
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