Book Title: Jain Tattva Darshan Part 05
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 78
________________ 113 अध्याख्यान द्रोपदी, जो महाभारत का कारण बनी। राग-द्वेष हमारी आत्मा के सबसे बड़े शत्रु हैं। इससे जीव को सिर्फ पीड़ा, दु:ख और दुगर्ति ही मिलती है। इसी के कारण जीव अपने समभाव (समता) को छोड़कर विभाव दशा में आता है। जहाँ राग होता है वहीं द्वेष भी होता है। इसलिए इनको छोड़ना ही श्रेयस्कर है। आत्म हितकर है। 12. कलह - झगड़ा करना, लड़ाई करना। यह क्रोध, मान, माया, लोभ, राग या द्वेष करने से उत्पन्न होता है। छोटे-12 कल छोटे झगड़े से ही बड़ी-बड़ी दुश्मनी होती है। और उस दुश्मनी में लोग बहुत से भयानक कार्य कर देते हैं जिसके लिये उसे हमेशा पछताना पड़ता है। इसलिए इन लड़ाई, झगड़े को सरलता से सुलझाना चाहिए, बढ़ाना नहीं। किसी भी देश समाज व पंथ के विकास की राह का सबसे बडा रोडा, मानव मूल्यों के नाश का कारण परिवार विघटन का बीजयही कलह है। कलह ही संस्कृति, समाज व जन संहार के पतन का कारण है। 13. अभ्याख्यान - सफेद झूठ बोलकर किसी पर झूठे इल्जाम (दोषारोपन)। लगाना। किसी व्यक्ति पर उसी के सामने गलत इल्जाम लगाना । जैसे झांझरीया मुनि। 14. पैशुन्य – चुगली करना। किसी के पीठ पीछे उसकी बुराई करना, चुगली करना। सच्चे, झूठे दोषों को पैशुन्य पीठ पीछे खोलना। ऐसा करने से पैशुन्य नाम का दोष लगता है। अजैन रामायण में मंथरा की यही भूमिका दशरथ के मौत का कारण बनी। परन्तु जैन रामायण के अनुसार दशरथ मोक्ष में गये। ऐसी कितनी ही बाते जैन रामायण को पढ़ने से मालूम होती है। 15. रति-अरति - खुशी (हर्ष) और गम (उद्वेग) रति - जो वस्तु हमें पसन्द हो उसकी प्राप्ति होने पर खुश होना और जो वस्तु या व्यक्ति अच्छे नहीं लगते हो वह दूर होने पर खुशी व्यक्त करना वह 'रति' नाम का दोष है। समता बिना सिद्ध बनना असंभव है। अत: हर हालात मे मन में समता भाव रखना ही, श्रेयस्कर है। अरति - जो व्यक्ति या वस्तु हमें पसन्द हो, उसका दूर होना और जो अच्छी नहीं लगती हो ऐसे व्यक्ति या वस्तु के मिलने पर दु:खी होना, उद्वेग पैदा अति करना। 172

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