Book Title: Jain Tattva Darshan Part 05
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 59
________________ 2. दर्शनावरणीय कर्म : N 2. दर्शनावरणीय कर्म यह कर्म (1) चमडी, (2) जीभ, (3) नाक, (4) आँख, (5) कान इन पाचों इन्द्रिय की शक्ति को कमजोर बनाता है। जो कर्म आत्मा के अनंतदर्शन गुण को रोकता है वह दर्शनावरणीय कर्म कहलाता है। इस कर्म के उदय से जीव को वस्तु का सामान्य बोध नहीं होता है। नींद बहुत आती है। इन्द्रीय की न्यूनता प्राप्त होती है। यह कर्म द्वारपाल के जैसा है। जिस तरह द्वारपाल से रोका गया मनुष्य राजा का दर्शन नहीं कर सकता, उसी तरह इस कर्म के उदय वाला जीव, वस्तु का सामान्य ज्ञान भी नही पा सकता। प्रश्न.1 दर्शनावरणीय कर्मबंध के कारण कौन से हैं ? उत्तर जिनमंदिर के उपकरणों की आशातना करने से । देव-गुरु-धर्म की निंदा करना। गुरु म.सा. का अनादर करना। नवकारवाली, मूर्ति व स्थापनाचार्य आदि तोड़ना, पैर लगाना, झूठे मुँह से हाथ लगाना। मंदिर में बात करना आदि 84 जिनमंदिर की आशातनाओं का त्याग न करना । देव, गुरु और धर्म के प्रति श्रद्धावान आत्मा की निंदा-तिरस्कार करना। प्रश्न.2 दर्शनावरणीय कर्मबंध का फल क्या है ? उत्तर जन्म से अंधापन आता है। नेत्र ज्योति कम होना, आँखों की बीमारियाँ होती है। अंगोपांग की विकलता। अधिक नींद आना, थीनद्धि निद्रा के उदय से हिंसा करके नरक आदि दुर्गति प्राप्त होती है।

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