Book Title: Jain Tattva Darshan Part 05
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 67
________________ वे पीडा से 500 योजन तक उछलते हैं। उछलकर जब नीचे गिरते हैं तब आकाश में पक्षी एवं नीचे शेर, चीता वगैरह मुँह फाड़कर खाने दौड़ते हैं। इस प्रकार अति भयंकर वेदना होती है। 1. शीत वेदना : हिमालय पर्वत पर बर्फ गिरता हो एवं ठंडी हवा चल रही हो उससे भी अनंतगुणी ठंडी, निर्वस्त्र एवं पंख छेदने पर जैसी पक्षी की आकृति होती है वैसी अत्यंत विभत्स आकृति वाले नारकी जीवन सहन करते हैं। 2. उष्ण वेदना : चारों तरफ अग्नि की ज्वालाएँ हो एवं ऊपर सूर्य भयंकर तप रहा हो उससे भी अधिक ताप। 3. भूख की वेदना : दुनियाभर की सभी चीजें (खाद्य-अखाद्य) खा जाय तो भी भूख नहीं मिटती। 4. तृषा वेदन : सभी नदी, तालाब, समुद्र का पानी पी जाय तो भी शांत न हो ऐसी तृषा लगती है। 5. खुजली की वेदना : चाकू से खुजली करे तो भी खुजली नहीं मिटती। 6. पराधीनता : हमेशा पराधीन होकर रहते है। 7. बुखार : हमेशा शरीर खूब गरम रहता है। 8. दाह : अंदर से खूब जलता है। 9. भय : परमाधामी एवं अन्य नारकों का सतत भय रहता है। 10. शोक : भय के कारण सतत शोक रहता है। दिवार आदि को अडने पर भी उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं। जमीन माँस, खून, श्लेष्म, विष्टा से भरपूर, रंग-बिभत्स, गंध-सड़े हुए मृत कलेवर के समान, रस-कड़वा एवं स्पर्श बिच्छु के समान होता है। उ) नरक में जाने के चार द्वार है: (1) रात्रि भोजन (2) परस्त्रीगमन (3) मांस भक्षण (4) कंदमूल भक्षण नरक में कौन जाते हैं ? अति क्रूर सर्प, सिंहादि, पक्षी, जलचर बहुधा नरक में से आते हैं एवं पुन: वहाँ जाते हैं। जो झगड़ा करता है, टी.वी. देखता है, कंदमूल-अभक्ष्य (ब्रेड वगैरह) खाते हैं, वे नरक में जाते हैं तथा धन की लालच, तीव्र क्रोध, शील नहीं पालने पर, रात्रि भोजन, शराब, मांस, होटल आदि का खाना एवं दूसरों को संकट आदि में डालना वगैरह पाप एवं महा मिथ्यात्व एवं अति रौद्र ध्यान के कारण जीव नरक में जाकर ऐसी तीव्र वेदना को सहन करता है। वहाँ उसको बचाने एवं सहाय करने वाला कोई नहीं होता। वहाँ माँ-बाप या सगे-सम्बंधी भी नहीं होते। कोई सहानुभूति नहीं बताते। 61

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