Book Title: Jain Tattva Darshan Part 05
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 60
________________ 3. वेदनीय कर्म 3. वेदनीय कर्म : 1. शाता वेदनीय 2. अशाता वेदनीय यह कर्म जीव को सुख एवं दुःख प्रदान करता हैं। यह कर्म आत्मा के अव्याबाध सुख के गुणों का नाश करता है। इस कर्म के उदय से जीवन को सुख-दुःख दोनों का अनुभव होता है। यह कर्म मध से लिपटी हुई तलवार के जैसा है। जिस तरह तलवार के ऊपर के मध का रस चाटते सुख होता है और तलवार की धार से जीभ कट जाये तो दुःख होता है। उसी तरह शाता वेदनीय से सुख होता है और अशाता वेदनीय से दुःख का अनुभव होता है। प्रश्न. 1 शातावेदनीय कर्मबंध के कारण कौन से हैं ? उत्तर गुरु की भक्ति करना, क्षमा धारण करना, प्राणियों पर अनुकंपा, दया रखना, औषध पथ्यादि से रोगी की सेवा सुश्रुषा करना, कषायों पर विजय करना, धर्म में दृढ़ श्रद्धा रखना । व्रतियों पर अनुकंपा (भक्ति) करना, लोभवृति का शमन करना आदि । प्रश्न. 2 अशातावेदनीय कर्मबंध के कारण कौन से हैं ? उत्तर दुःख शोक, आक्रंदन, विलाप करना और दूसरों को कराना, व्रतों का यथार्थ पालन नहीं करना, चीजों में मिलावट करना, गलत माप-तौल रखना, दूसरों की निंदा करना और स्वयं की प्रशंसा करना, ठगाई करना गुरु भक्ति नहीं करना और जीवों की दया न करना । 54

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