Book Title: Jain Tattva Darshan Part 05
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai
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2. काव्य संग्रह A. प्रार्थना - नवपद प्रार्थना
(राग. बोधागाधं) श्री अरिहंतो सकल हितदा उच्च पुण्योपकारा सिद्धो सर्वे मुगतिपुरीना गामीने ध्रुव तारा
आचार्यों छे जिन धरमना दक्ष व्यापारी शूरा
उपाध्यायों गणधर तणा सूत्रदाने चकोरा साधु आंतर अरि समूहने विक्रमी थइ य दंडे दर्शन ज्ञान हृदय मलने मोह अंधार खंडे
चारित्र छ अघरहित हो जिंदगी जीव ठारें
नवपदमाहे अनुपम तप छे जे समाधि प्रसारे वंदु भावे नवपद सदा पामवा आत्म शुद्धि आलंबन हो मुज हृदयमां द्यो सदा स्वच्छ बुद्धि।
B. प्रभु सन्मुख बोलने की स्तुति
अरिहंत वंदनावली च्यवन कल्याणक
जे चौद महास्वप्नों थकी निज माता ने हरखावता वली गर्भमांहि ज्ञानत्रय ने गोपवी अवधारता। ने जन्मतां पहेला ज चोसठ इन्द्र जेहने वंदता एवा प्रभु अरिहंत ने पंचागं भावे हुं नमुं ।।
जन्म कल्याणक:
महायोगना साम्राज्यमा जे गर्भमां उल्लासता, ने जन्मता त्रण लोकमां महासूर्य सम परकाशता । जे जन्म कल्याणक वडे सौ जीव ने सुख अर्पता एवा प्रभु अरिहंत ने पंचागं भावे हुं नमुं ।।

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