Book Title: Jain Tattva Darshan Part 05
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 23
________________ संसार में भटकाते है। आत्मा को दुःखों की आग में झोंकते है। ऐसे राग-द्वेष आदि दुर्गुण रुपी शत्रुओं को जिन्होंने न श कर लिया है उन्हें अरिहंत कहते है। अरिहंत को अहँत भी कहा जाता है। जो चौंतीस (34) अतिशयों से सुशोभित है, देव-देवेन्द्रों से पूजित है, बारह (12) गुणों से युक्त है वे अरिहंत भगवंत कहलाते है। उन्होंने आठ कर्मों में से चार घाती कर्म का नाश किया है। प्रश्न: आठ कर्म कौन कौन से ? घाती कर्म याने क्या ? उत्तरः पूरे विश्व का संचालन कर्म करते है। जो जीव जो कर्म बांधता है उसे ही वह कर्म भुगतना पडता है। उन कर्मों के कारण जीव को दु:खमय संसार में भटकना पडता है। उन कर्मों का नाश करने से मोक्ष प्राप्त होता है। कर्म आठ प्रकार के होते है : 1. ज्ञानावरणीय कर्म 2. दर्शनावरणीय कर्म 3. वेदनीय कर्म 4. मोहनीय कर्म 5. आयुष्य कर्म 6. नाम कर्म 7. गोत्र कर्म 8. अंतराय कर्म इन आठों कर्मों को याद रखने के लिए एक छोटी सी कहानी है। ज्ञानचंद सेठ दर्शन करने गए। रास्ते में वेदना हुई। सामने मोहनभाई वैद्य मिले। वैद्यराज, मुझे दवा नहीं दी तो मेरा आयुष्य पूरा हो जाएगा। वैद्य ने कहा की भगवंत का नाम लो, गोत्र देवता को याद करो। आपके सभी अंतराय दूर हो जाएंगे। इस कहानी में बड़े किए गए शब्द आठ कर्मों के नाम है। आत्मा के मूलगुणों पर जो सीधा प्रहार करके उन गुणों का जो नाश करते है उन्हे घाती कर्म कहते है। 1. ज्ञानावरणीय 2. दर्शनावरणीय 3. मोहनीय 4. अंतराय - यह चार कर्म आत्मा के मूल गुणों पर सीधा प्रहार करते है इसलिए इन्हें घाती कर्म कहते है। 1. वेदनीय 2. आयुष्य 3. नाम 4. गोत्र - यह चार अघाती कर्म है क्योंकि ये आत्मा के मूलगुणों पर सीधा प्रहार नहीं कर सकते। जिन्होंने चारों घाती कर्मों का संपूर्ण नाश कर लिया हो और जो 12 गुणों से युक्त है वे अरिहंत कहलाते है। प्रश्न: अरिहंत भगवंत के बारह गुण कैसे ? उत्तर: अरिहंत भगवंत के बारह गुण दो विभागों में बांटे जा सकते है। आठ प्रातिहार्य और चार अतिशय प्रतिहारी याने अंगरक्षक (Body Guards)। जो जो वस्तु अरिहंत भगवंत के साथ साथ रहे उन्हें प्रातिहार्य कहते है। अरिहंत परमात्मा जहां जहां विचरते है वहां वहां आठ वस्तुएँ उनके साथ रहती है। वे आठ वस्तुएँ प्रातिहार्य कहलाती है। इस दुनिया में अन्य किसी के भी पास न हो, ऐसी विशिष्टता अरिहंत परमात्मा के पास होती है। 3421 -

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