Book Title: Jain Tattva Darshan Part 05
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 48
________________ | 11. जीवदया-जयणा । कुल A. जीव विज्ञान जो अपने समान सुख-दु:ख को महसूस करे, वे जीव हैं। जैन शास्त्र में जीव के 563 भेद बताए हैं। नरक के 14 भेद तिर्यंच के 48 भेद मनुष्य के - 303 भेद देव के 198 भेद 563 भेद पाँच इन्द्रिय से भी जीव को पहचान सकते हैं : एक इन्द्रिय वाले - एकेन्द्रिय जीव - जैसे कि...पृथ्वी, पानी, अग्नि, हवा, वनस्पति। दो इन्द्रिय वाले - बेइन्द्रिय जीव जैसे कि...लट, शंख, कृमि, पानी के पोरे। तीन इन्द्रिय वाले - तेइन्द्रिय जीव जैसे कि...जूं, चींटी, मकोड़े, उधेहि...। चार इन्द्रिय वाले - चउरिन्द्रिय जीव जैसे कि...मच्छर, मक्खी, भमरा, बिच्छू। पाँच इन्द्रिय वाले - पंचेन्द्रिय जीव जैसे कि...देव, नारकी, मनुष्य, तिर्यंच। __ऊपर बताए गये सभी जीव अपने समान हैं, लेकिन कर्मों के कारण इनकी अलग-अलग अवस्था है। हमें इन जीवों को बचाना चाहिए। जीवों की जयणा = जीवों को बचाने के उपाय 1. एकेन्द्रिय (1) पृथ्वीकाय के जीव : एक ऑवले जितने पृथ्वीकाय के जीव यदि कबूतर का रूप धारण करे तो 1 लाख योजन के जंबूद्वीप में भी नहीं समा पाएंगे। रात्रि के समय जो धूल बाहर से उड़कर अपने घर में आती है, वह सचित्त मिट्टी होती है, इसे वासी काजा कहते हैं। सुबह उठकर इन जीवों की रक्षा के लिए वासी झाडू निकालने के बाद ही घर में घूम सकते हैं। रास्ते में मिट्टी तुरंत खोदी हुई हो तो उस पर नहीं चलना चाहिए। उदा : सब जाति की मिट्टी, धातु, रत्न, नमक, पत्थर आदि। (2) अपकाय (पानी के जीव) : पानी की एक बूंद के जीव यदि सरसों के दाने जितना अपना शरीर बनाए तो पूरे जंबूद्वीप में नहीं समा पायेंगे एवं एक बूंद में 36,450 चलते-फिरते जीव भी वैज्ञानिकों ने सिद्ध किए हैं। साबुन लगाने से पानी के जीवों को आँख में मिर्ची डालने से भी कई गुना अधिक वेदना होती है। एक घड़ा अलगण पानी उपयोग करने पर 7 गाँव को जलाने जितना पाप लगता है। 46

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