Book Title: Jain Tattva Darshan Part 05
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

View full book text
Previous | Next

Page 30
________________ 7. मेरे गुरू गुरुवंदन प्रश्न : गुरूवंदन के कितने प्रकार है और कौन-कौन से है ? उत्तर : गुरु वंदन के तीन प्रकार हैं : 1. फेटा वंदन : मस्तक झुकाकर साधु साध्वी को मत्थएण वंदामि कहना, अथवा श्रावक-श्राविका परस्पर प्रणाम कहें । 2. थोभ वंदन : दो खमासमण, इच्छकार, अब्भुडिओ पूर्वक साधु-साध्वीजी को यह वंदन किया जाता है। पुरुष साधुओं को एवं बहनें साधु-साध्वीजी भगवंत को यह वंदन करें । 3. द्वादशावर्त वंदन : दो वांदणा पूर्वक पदवीधर को यह वंदन किया जाता है। प्रश्न : कौन से साधु वंदनीय हैं ? उत्तर : पाँच प्रकार के साधु वंदनीय हैं - 1. आचार्य : गण के नायक एवं अर्थ की वाचना देने वाले । 2. उपाध्याय : गण के नायक होने के लायक ( युवराज के समान) एवं सूत्र की वाचना देने वाले । 3. प्रवर्तक : साधु भगवंतों को क्रिया-कांड में प्रवर्ताने वाले । 4. स्थविर : पतित परिणामी साधु को उपदेशादि से मार्ग में स्थिर करने वाले । 5. रत्नाधिक : ज्ञान, दर्शन, चारित्रगुण में जो अधिक है। गृहस्थ की अपेक्षा से सभी साधु रत्नाधिक है। इनको वंदन करने से कर्मों की निर्जरा होती है। प्रश्न : गुरू महाराज को कब वंदन नहीं करना चाहिए? उत्तर 1. गुरू जब धर्म कार्य की चिंता में व्याकुल हों । 2. पराङ्मुख (उल्टे) बैठे हों । 3. क्रोध, निद्रा वगैरह प्रमाद में हों । 4. आहार-विहार-निहार (ठल्ला, स्थंडिल, मातरा) कर रहे हों या करने की इच्छा वाले हों, तब वंदन नहीं करना चाहिए । प्रश्न : गुरु को कब वदन करना चाहिए ? उत्तर : 1. गुरू जब प्रशांत चित्त वाले हों । 2. अपने आसन पर व्यवस्थित बैठे हो । 3. उपशांत हों। 4. वंदन करने वाले को धर्मलाभ आदि कहने के लिए उद्यत हो, उस समय गुरू की आज्ञा लेकर वंदन करना चाहिए । 28

Loading...

Page Navigation
1 ... 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104