Book Title: Jain Tattva Darshan Part 05
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai
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कानमा खीला ठोक्या ज्यारे, थई वेदना प्रभु ने भारे तो ओ प्रभुजी शांत विचारे, गोवालनो नहीं वांक लगारे समा आपीने ते जीवोने, तारी दीधो संसार,
तारा महिमानो ..... ।। 3 || महावीर महावीर गौतम पुकारे, आँखो थी आंसु नी धारा बहावे ज्यां गया एकला मूकी मुजने, हवे नथी कोई जगमां मारे । श्चाताप करता-करतां, उपन्यु केवल ज्ञान, तारा महिमानो ...... || 4 || जान विमल गुरु वयणे आजे, गुण तमारा भावे गावे धई सुकानी तुं प्रभु आवे, भवजल नैया पार लगावे । अरज अमारी उरमां धारी, वंदु वारंवार,
तारा महिमानो ..... || 5 ||
E. (अ). श्री चंद्रप्रभ जिन स्तुति
सेवे सुर वृंदा, जास चरणारविंदा, अट्ठम जिनचंदा, चंद वर्णे सोहंदा, महसेन नृप नंदा, कापता दु:खदंदा, लंछन मिष चंदा, पाय मानुं सेविंदा
(आ). श्री महावीरस्वामी जिन स्तुति जय जय भवि हितकर, वीर जिनेश्वर देव, सुरनरनां नायक , जेहनी सारे सेव। करुणा रस कंदो, वंदो आणंद आणी, त्रिशला सुत सुंदर, गुण मणि के रो खाणी || 1 || जस पंच कल्याणक, दिवस विशेष सुहावे , पण थावर नारक, तेहने पण सुख थावे। ते च्यवन जन्म व्रत, नाण अने निर्वाण, सवि जिनवर केरा, ए पांचे अहिठाण
।। 2 ।।

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