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जैनस्तोत्रत्रसन्दोहे |
बिन्दुं नवपइसद्विजंति तह भैरवमंतिइं कणयपुप्फमंतेवि धाणि पागडि हुअ जंतिअ । अवचूरिः ।
“ॐ नमो माहामाया बाळकुंआरी, करई सेत सणगार । सुवर्णपा - लखि बइठी करइ सार | ला देवदत्त मनुं चितवइ तेहनई करइ : संहार संतोष स्वाहा ह्री ठः " अनेन मन्त्रेण अभिमन्त्र्य एतद् यन्त्रं दीयते ।
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ॐ नमो सेत्री सात्री सिद्धवडि कुण कुण छइ ? च्यारि वीर, कुण कुंण ? नारसिंह, चतुर्भुज, त्रैलोक्यडंबर, कालभैरव तेहनी हाक वाजीं एकवीसमई ब्रह्माण्ड गाजी, चेडऊ मार करइ, पइसार करइ, हिनं पइसइंतु हांस लिई, नाभिकमल पइमरंतु परमहंस लिई, धूणइ धूणावइ, न धूणइ तु श्रीभैरवनी आज्ञा फुरइ इrt मंत्रि कणवीर पुष्प २१ वार २१ अभिमंत्री नासिकाई प्राण लेवराविदं दोष प्रगट हुई बोलई । दोष टालवा भणी धूप लखिइं छई
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गुग्गल, गोरोचन, सरिसव, राई, हिंग, मीठ, मिरी, सुंठ, निगुडि पान, लिंबपत्र, सर्पकांचली, धूसऊ, ईश्वरनी माल, हनुमाननी माल, रविवार गृहीत गादह लींड, चहूवटानी धूलि, वंशलोचन, जाना कुकसा मार्जारनी विष्ठा, श्वाननी विष्टा, वांसनी गांठ, सममात्रा एकत्र करी श्रीपञ्चाङ्गुलीनई, मन्त्रइं रविवारई
१०८ वार अभिमंत्रीइं दिन ३ त्रिकाल धूणी दिजइं सर्वदोष छांडी जाई ॥
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[ श्रीशुभसुन्दर
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