Book Title: Jain Stotra Sandohe Part 01
Author(s): Chaturvijay
Publisher: Sarabhai Manilal Nawab
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११२
जैनस्तोत्रसन्दोहे। सारस्सयमाइच्चा वहि वरुणगद्दतोअ तुसिया य ! अव्वाबाह अगिच्चा रिटुभिहा तेसु संति सुरा ॥१०॥ दुदुदु तिसु पढोसग सयसंगहिय चउदस सहस्स चउदहिआ। सत्तुत्तर संग सहस्सा नवुत्तरा नवसया कमसो ॥११॥ अडसयराऊ तिभवाइसिवगई सम्मदिद्विणो भविया। ते वेयालियकप्पा निय निय परिवारिया इन्तु ॥१२॥ जय जय वाभिमुहा भणंति बुज्झाहि लोगनाह ! लहुं । भयवं ! तिजयहियत्थंसुहम्म तित्थं पवत्तेति ॥१३॥ तो वर वरित्ति उग्धोसिविय तिगाइसु किमिच्छिय बहुसो । उदयाइ भोयणं जा सधणममियमणुदिणं दिति ॥१४॥ तइ सुरविरइय कणगेग कोडि अडलक्ख पायरासं जा। तं कोडि तिसय अडसीयसीइ लख्खा हवइ वरिसे ॥१५॥ तो उग्गतवेणंतररिऊ तविय धम्मकित्ति जिणलच्छि । पाविंसु तिविहवीरे तिविहं तिविहेण ते नमह ॥१६॥
समाप्त
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