Book Title: Jain Stotra Sandohe Part 01
Author(s): Chaturvijay
Publisher: Sarabhai Manilal Nawab

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Page 591
________________ Jain Education International ३२ निर्नामका ४ यशोवि. ४ निर्नामका For Personal & Private Use Only शत्रुञ्जयक्षोणिधर। शत्रुञ्जयद्वात्रिशिका शम्भव ! सुखद . (ऐ. स्तु. ३) शम्भवजिनस्तुतिः शमदमोत्तम जेसलमेरुपार्श्वजिनस्तुतिः शरत्पूर्णचन्द्रावद तैः विमलजिनस्तुतिः शर्म प्रयच्छ सुशर्म० जयराजपल्लीस्थपार्श्वस्तवनम् शश्वच्छासनवैरि जयराजपुरीस्थपार्श्वस्तवः शान्ताकारं सकल उखदं०(नि.स्तु.११)श्रेयांसजिनस्तुतिः शान्तानाम्रोकरक्षा श्रीपार्श्वनाथलधुस्तवः शान्ति शान्तिनिशान्तं. लघुशान्तिस्तवनम् शान्तो वेषः शसुख० साधारणजिनस्तवनम् शालिव्रताम्भो० हे. २१) नमिजिनस्तवनम् शिवपूःस्यन्दनं० (ऋ. चै, ४) अभिनन्दमजिनचैत्यवन्दनम् शिवरमावरमा० . आदिजिनस्तवनम् शुक्लच्यानसुधा पञ्चतीथींस्तवनम् शुभभावानतः स्तमि० सर्वज्ञस्तोत्रम् ( सटीकम् ) शुभशुभसागर चतुर्विंशतिजिनस्तवनम् शृक्षारयन्तं गिरि गिरिनारस्थनेमिजिनद्वात्रिंशिका शैकिंवः शकेतु ज्ञानपञ्चमीस्तुतिः (श्रीनिमिःपादपूर्तिः) ११ विजयशेखरः १७ सिद्धान्तरुचिः ४ निर्नामका ५ शिवसुन्दरसूरिः १९ मानदेवसूरिः ९ अप्पभटिसूरिः ५ हेमविजयः ९ ऋषिवर्द्धनः ९ दीपविजयः निर्मामकम् १० सोमतिलकसूरिः __७ आनन्द्रचन्द्रः ३२ जयशेखरसूरिः ४. निर्नामका जैनस्तोत्रसन्दाह। www.jainelibrary.org १० १६ ई ३६ । ।

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