Book Title: Jain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Author(s): Mokshratnashreejiji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 10
________________ साध्वी मोक्षरत्ना श्री सामाजिक एवं धार्मिक-जीवन भी उन्नत होता है। संस्कारों से संस्कारित होने पर व्यक्ति किसी कार्य या साधना के योग्य हो जाता है। इस प्रकार संस्कार वे क्रियाएँ एवं विधियाँ हैं, जो व्यक्ति को किसी कार्य को करने की योग्यता या अधिकार प्रदान करती हैं। __ संस्कारों को सम्पन्न किए बिना मानव-जीवन अपवित्र, अपूर्ण और अव्यवस्थित माना जाता है। अप्रत्यक्ष रूप से सम्भावित बाधाओं को दूर करना तथा आगे के लिए जीवन को निर्विघ्न बनाना संस्कारों का प्रयोजन है और इसी कारण वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भी इनका महत्व हैं। संक्षेप में, व्यक्ति को जीवन जीने के योग्य गुणाढ्य, परिष्कृत और व्यवस्थित स्वरूप प्रदान करने में संस्कारों का महत्वपूर्ण योगदान रहा हुआ है। लौकिक-समृद्धि तथा वांछित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए भी संस्कारों को सम्पन्न किया जाता है। संस्कारों के माध्यम से व्यक्ति सामाजिक-प्रतिमानों, मूल्यों, आदर्शों, आदि का ज्ञान प्राप्त करता है, जिससे नैतिक-उत्थान होता है और वह जागरूक होकर दायित्वों के लिए प्रेरित होता है। वह सच्चरित्र बनकर सामाजिक-दायित्वों का निर्वाह करता है तथा धार्मिक-दृष्टि से उनके निर्विघ्न सम्पन्न होने के लिए इष्ट देवों का पूजन, स्तुति, प्रार्थना, आदि करता है। संस्कार व्यक्ति को अपूर्णता से पूर्णता की ओर ले जाते हैं और उसे एक विशिष्ट योग्यता प्रदान करते हैं। संक्षेप में, संस्कार हमारे वैयक्तिक और सामाजिक जीवन की क्रियाओं को धार्मिक एवं आध्यात्मिक-स्वरूप प्रदान करते हैं। __संस्कारों का जीवन में अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है, जिसे हम निम्न बिन्दुओं के माध्यम से समझ सकते हैं : १. अशुभ प्रभावों का प्रतिकार : देवी और देवताओं के अशुभ प्रभावों का निराकरण करने हेतु संस्कार आवश्यक हैं। इनसे व्यक्ति का भय समाप्त होता है और साहस आता है। २. अभीष्ट प्रभावों का आकर्षण : जिस प्रकार इनके माध्यम से अशुभ प्रभावों का प्रतिकार किया जाता है, उसी प्रकार इनके द्वारा व्यक्ति के हित के लिए अभीष्ट प्रभावों को आकृष्ट भी किया जाता है। ३. संस्कारों का भौतिक प्रयोजन : संसार की भौतिक सामग्रियों की प्राप्ति हेतु भी संस्कार किए जाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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