Book Title: Jain Sahitya ke Vividh Ayam
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 10
________________ सुख मध्यम होता है । रक्त-वर्ण अधिक सह्य होता है । हारिद्र वर्ण सुखकर और शुक्ल वर्ण अधिक सुखकर होता है । - गीता में गति के कृष्ण और शुक्ल ये दो विभाग किये हैं। कृष्ण गतिवाला पुनः-पुनः जन्म लेता है और शुक्ल गतिवाला जन्म-मरण से मुक्त होता है। धम्मपद ० में धर्म के दो विभाग किये गये हैं। वहीं वर्णन है कि पण्डित मानव को कृष्ण धर्म को छोड़कर शुक्ल धर्म का आचरण करना चाहिए। ___ पतञ्जलि ने पातञ्जल४१ योग सूत्र में कर्म की चार जातियाँ प्रतिपादित की हैं। कृष्ण, शुक्ल-कृष्ण, शुक्ल, अशुक्ल-अकृष्ण । ये क्रमशः अशुद्धतर, अशुद्ध, शुद्ध और शुद्धतर हैं। इस तरह लेश्याओं के साथ में आंशिक दृष्टि से तुलना हो सकती है। स्थानांग में सुगत के तीन प्रकार बताये गये हैं-(१) सिद्धि सुगत, (२) देव सुगत, (३) मनुष्य सुगत ।४२ अंगुत्तर-निकाय में भी राग-द्वेष और मोह को नष्ट करनेवाले को सुगत कहा है । स्थानांग में लिखा है कि पांच कारणों से जीव दुर्गति में जाता है । ये कारण हैं-हिंसा, असत्य, चोरी, मैथुन और परिग्रह ।४४ अंगुत्तर निकाय ५ में नरक जाने के कारणों पर चिन्तन करते हुए लिखा हैअकुशल काय कर्म, अकुशल वाक् कर्म, अकुशल मन कर्म और सावध आदि कर्म ६ नरक के कारण हैं। श्रमणोपासक के लिये उपासकदशांग सूत्र और अन्य आगमों में सावध व्यापार का निषेध किया गया है तथा उन्हें पन्द्रह कर्मादान के अन्तर्गत स्थान दिया गया है तो बौद्ध साहित्य में भी सावध व्यापार का निषेध है। वहाँ भी कहा गया है शस्त्र वाणिज्य, जीव का व्यापार, मांस का व्यापार, मद्य का व्यापार और विष व्यापार नहीं करने चाहिए। __स्थानांग व अन्य आगम साहित्य में श्रमण निर्ग्रन्थ इन छह कारणों से आहार ग्रहण करता है-(१) क्षुधा की उपशांति (२) वैयावृत्य के लिए (३) इविशुद्धि के लिए (४) संयम के लिए (५) प्राण धारण करने के लिए और (६) धर्म चिन्ता के लिए।४८ अंगुत्तरनिकाय में आनंद ने एक श्रमणी को इसी प्रकार का उपदेश दिया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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