Book Title: Jain Sahitya ke Vividh Ayam
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 13
________________ ( ११ ) अंगुत्तरनिकाय में भी एक क्षेत्र में एक ही चक्रवर्ती और एक ही तथागत बुद्ध होते हैं ऐसी मान्यता है । समवायांग५७ में बताया है कि जहाँ अरिहन्त तीर्थंकर विचरते हैं वहाँ ईति, उपद्रव का भय नहीं रहता, मारी का भय, स्वचक्र, परचक्र का भय नहीं रहता । आदि तीर्थंकर के ३४ अतिशय हैं । अंगुत्तरनिकाय में तथागत बुद्ध के ५ अतिशय बताये हैं ।५८ वे अर्थज्ञ होते हैं, धर्मज्ञ होते हैं, मर्यादा के ज्ञाता होते हैं, कालज्ञ होते हैं और परिषद् को जाननेवाले होते हैं। दोनों परम्पराओं ( जैन और बौद्ध ) में चक्रवर्ती का उल्लेख है और उसको बहजनों के हितकर्ता माना है। स्थानांग५९ और समवायांग६० में चक्रवर्ती के १४ रत्न बताये गये हैं। तो दीघनिकाय में चक्रवर्ती के ७ रत्नों का उल्लेख है। उनकी उत्पत्ति और विजयगाथा प्रायः एक सदृश है। स्थानांग ६२ में बुद्ध के तीन प्रकार-ज्ञानबुद्ध, दर्शनबुद्ध और चारित्रबुद्ध बताये हैं तथा स्वयंसंबुद्ध, प्रत्येकबुद्ध और बुद्धबोधित ये तीन प्रकार बताये गये हैं। अंगुत्तरनिकाय में बुद्ध के तथागतबुद्ध और प्रत्येकबुद्ध ये दो प्रकार बताये गये हैं। स्थानांग में स्त्री के स्वभाव का चित्रण करते हुए चतुर्भंगी बताई गई है। वैसे ही अंगुत्तरनिकाय५ में भार्या की सप्तभंगी बताई गई है (१) वधक के समान (२) चोर के समान (३) अय्य सदृश (४) अकर्म कामा (५) आलसी (६) चण्डी (७) दुरुक्तवादिनी इत्यादि लक्षण युक्त । माता के समान, भगिनी के समान, सखी के समान और दासी के समान स्त्री के ये अन्य प्रकार बताए हैं। ___ स्थानांग ६ । में चार प्रकार के मेघ बताये हैं (१) गर्जना करते हैं किन्तु बरसते नहीं है, (२) गर्जते नहीं बरसते हैं, (३) गरजते और बरसते हैं, (४) गरजते भी नहीं बरसते भी नहीं। इस उपमा का संकेत किया है तो अंगुत्तरनिकाय ६७ में इस प्रत्येक भंग में पुरुष को घटाया गया है (१) बहुत बोलता है किन्तु करता कुछ नहीं, (२) बोलता नहीं पर करता है, (३) बोलता भी नहीं और करता भी नहीं, (४) बोलता भी है, करता भी है। इसी प्रकार गरजना और बरसना रूप चतुभंगी .. अन्य प्रकार से भी घटित की गई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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