Book Title: Jain Sahitya ke Vividh Ayam
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 29
________________ ८६. वही १०१८, - सुत्तनिपात ५२।१० वही १०।१० - सुप्तनिपात ५२।१६ वही १०।११ - सुत्तनिपात ५४।४-५ ८७. वही ५१२१४ – कौशिकजातक २२६ ८८. वही २७ - विसवन्तजातक ६९ ८९. वही ४।८ - इतिवृत्तक १२ ९०. ( २७ ) वही ३।२-३ - भागवत ११।१८।३ वही ३०९ - भागवत ७।१२।१२ ९१. वही ४।७ - गीता २।५४ वही ४१९ - गीता ५।७ वही ४।१० - गीता ४।३८ ९२. वही ३।१२ - मनुस्मृति ६।२३ ९३. कल्पसूत्र २०४, पृ० २८१ ९४. भगवती सूत्र ७।३।२७९ ९५. थेरा भगवन्तो - भगवती ९६. भगवतीशतक १५ ९७. सूत्रकृतांग १।१।३६ ९८. राजप्रश्नीय ५ ९९. स्थानांग ठा० ३ १००. समवायांग सूत्र २२ १०१. दीघनिकाय सामञ्ञफलसुत्त १५ १०२. विनयपिटक पंचशतिकास्कन्धक १०३. उपासक दशांग, भगवती १०४. अंगुत्तरनिकाय एकक निपात १४ १०५. भगवती १०६. महावग्ग १०७. मज्झिमनिकाय १1१1९ १०८. तन्निसग दिधिगमाद्धा - तत्त्वार्थसूत्र १३ १०९. मज्झिमनिकाय १|५|३ ११०. मज्झिमनिकाय १1१1९ १११. प्रश्नव्याकरण संवरद्वार ११२. (क) तत्त्वार्थ सूत्र ९।७ (ख) बारस अणुवेक्खा; आ० कुन्दकुन्द ११३. तत्त्वार्थ सूत्र ७।११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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